બુધવાર, 30 એપ્રિલ, 2014

3डी टीवी में जुड़ी एक और अनोखी तकनीक

3डी टीवी में जुड़ी एक और अनोखी तकनीक 

 

3डी फिल्मों के बाद अब 3डी यानी त्रिआयामी टीवी सैट बाज़ार में उपलब्ध हो चुके हैं और कुछ 3डी चैनल [जैसे कि डिस्कवरी 3डी और नेट जीयो 3डी] प्रसारण शुरू करने की तैयारी में है. पश्चिमी देशों में यह तकनीक और 3डी टीवी चैनल पहले से ही उपलब्ध है. अब इस माध्यम को गेमिंग के साथ जोड़कर इसे एक नया आयाम देने का प्रयास किया गया है.

जापान के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड इंडस्ट्रीयल साइंस एंड टेक्नोलोजी के वैज्ञानिकों ने i3Space तकनीक विकसित की है. इस तकनीक की मदद से कोई भी व्यक्ति टीवी पर प्रसारित हो रही 3डी छवियों को अपनी उंगलियों के इशारों पर तोड़मरोड़ सकता है, उन्हें दबा सकता है और खींच सकता है.

कैसे काम करती है यह तकनीक?
इस तकनीक में एक विशेष 3डी टीवी सैट और 6 मोशन डिटेक्टर कैमेरा एक साथ काम करते हैं. ये कैमेरा दर्शक की उंगलियों पर नज़र रखते हैं. दर्शक अपनी तर्जनी उंगली पर एक क्लिप पहनते हैं. इसके बाद जब भी वे किसी दृश्य के पास अपनी उंगली ले जाते हैं तो वांछित नजदीकी प्राप्त होते ही वह क्लिप कम्पन करने लगती है. इससे दर्शक जान जाते हैं कि उनकी उंगली अब उस दृश्य [दृश्य में दिखाई जा रही छवि] को छू रही है. इसके बाद वे अपनी उंगली हिलाते हैं तो उस हिसाब से वह छवि अपना आकार बदलने लगती है.

इस तकनीक को विकसित करने वाले संस्थान के प्रवक्ता ने कहा कि - ऐसा पहली बार हुआ है जब आप हवा में तैर रही छवियों [आभासी] को छू पा रहे हैं. यह तकनीक आभासी वातावरण को और भी अधिक वास्तविक बनाती है. अब आप इन आभासी तस्वीरों को महसूस कर सकते हैं और उन्हें हिला-डुला और तोड़ मरोड भी सकते हैं.

कहाँ काम आएगी यह तकनीक?
यह तकनीक गेमिंग के क्षैत्र में काफी उपयोगी साबित हो सकती है. यह तकनीक जायरोक्यूबसेंसुअस इंटरफेस पर आधारित है जिसे इस संस्थान ने 2005 में विकसित किया था.

माइक्रोसोफ्ट की नई टचस्क्रीन तकनीक

माइक्रोसोफ्ट की नई टचस्क्रीन तकनीक 

 

माइक्रोसोफ्ट ने एक नई तकनीक विकसित की है जिसकी मदद से प्रयोक्ता डिवाइज की स्क्रीन पर दिख रहे चित्रों पर प्रदर्शित टेक्ष्चर, उभार और खुरदुरी सतह को महसूस कर पाएंगे.

यदि यह तकनीक लोकप्रिय होती है और परीक्षणों में सफल रहती है तो इसका इस्तेमाल मोबाइल फोनों में भी होने लगेगा और एक दिन कीपैड वाले मोबाइल फोन भूतकाल की बात हो जाएंगे. क्योंकि तब स्क्रीन पर ही उभरने वाले कीपैड का इस्तेमाल करना एकदम सरल हो जाएगा.

परंतु माइक्रोसोफ्ट ने इस तकनीक को फिलहाल अपने टेबल डिवाइज़ सर्फेस के लिए तैयार किया है. सर्फेस एक बडा कम्यूटिंग डिवाइज़ है जो टेबलनुमा है. टेबल की सतह पर स्क्रीन लगी होती है और नीचे रखा एक प्रोजेक्टर तस्वीरों को प्रोजेक्ट करता है. वहीं पर लगे कैमरे प्रयोक्ता की उंगलियों के क्षैत्र को इंफ्रारेड तकनीक के माध्यम से चिह्नित करते हैं और इस तरह से टचस्क्रीन सुविधा प्रदान की जाती है.

अब सर्फेस प्रयोक्ता स्क्रीन के ऊपर दिख रहे चित्रों को ना केवल देख पाएंगे बल्कि महसूस भी कर पाएंगे. माइक्रोसोफ्ट ने जिस तकनीक को पेटेंट करवाया है उसमें पिक्सल साइज़ के पोलिमर लगाए गए हैं, जो पराबैंगनी किरणों की तरंगों के हिसाब से खुद को कठोर या मुलायम बनाएंगे. इससे सतह के टेक्ष्चर को महसूस किया जा सकेगा.

इससे कम्प्यूटिंग और भी सरल और वास्तविक बन जाएगी.

अमीर बनना है? आपकी गणित कैसी है?

अमीर बनना है? आपकी गणित कैसी है? 

 

क्या आप अंकों के खेल में अच्छे हैं? क्या आप गणनाएँ करने में तेज हैं? यदि हाँ तो बहुत सम्भावना है कि आप अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक आमदनी करते होंगे. और यदि आपकी पत्नी भी अंकों की गणनाओं में तेज हैं तो आपके अमीर होने की सम्भावना और भी बढ जाती है.

एक नई शोध के अनुसार जो युगल अंकों की गणनाओं में तेज होते हैं वे अपने जीवन के मध्यकाल में अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक कमाई करते हैं. रैंड कोर्पोरेशन जो कि एक गैर व्यवसायी शोध संस्थान है कि लेबर मार्केटस एंड डेमोग्राफी स्टडीज़ के अनुसार अंकों की गणनाओं में निपुण लोग अधिक पैसा कमाते हैं. इस शोध के लिए कुछ युगलों से अंकों पर आधारित सवाल पूछे गए और उनकी आमदनी की जानकारियाँ ली गई.

इस अभ्यास से पता चला कि जो युगल अंकों की गणनाओं में तेज थे उनकी आय अनुपात में 17 लाख डॉलर सालाना थी, परंतु जो लोग अंकों की गणनाओं में कमजोर थे उनकी सालाना आय मुश्किल से 2 लाख डॉलर ही थी.

शोधकर्ताओं के अनुसार अंकों की गणनाओं में निपुण व्यक्ति यदि घर के वित्तीय निर्णय लेता है तो ऐसे निर्णय आम तौर पर सही होते हैं और उनसे लाभ अर्जित होता है. परंतु गणित में कमजोर व्यक्ति लाभ और हानि का हिसाब ठीक से नहीं लगा पाते हैं और वित्तीय निर्णय लेने में भी झिझक महसूस करते हैं. इसलिए वे पैसे कमाने के कई मौके खो देते हैं.

अंकों की गणनाएँ बचपन में विद्यालयों में सिखी जाती हैं, परंतु कुछ लोगों में यह क्षमता नैसर्गिक रूप से बेहतर होती है. यह एक ऐसी कला है जो सिखी तो जा सकती है परंतु इसमें पारंगत होना नैसर्गिक रूप से निर्भर करता है.

સોમવાર, 28 એપ્રિલ, 2014

मीटर गैज और ब्रोड गैज की रोचक कहानी

मीटर गैज और ब्रोड गैज की रोचक कहानी 

 

भारत में आज भी रेलगाडियाँ कई अलग अलग माप के ट्रेक पर चलती है - जैसे कि ब्रोड गैज, मीटर गैज, नैरो गैज आदि.. परंतु सर्वमान्य ट्रेक अब ब्रोड गैज हो गया है. कई अन्य तकनीकों की तरह भारत का रेलवे सिस्टम भी अंग्रेजो के द्वारा ही विकसित किया गया था और उस जमाने के हिसाब से उसे मान्यता दी गई थी. तो फिर ब्रोड गैज और मीटर गैज के माप किस तरह से तय किए गए? आइए जानते हैं -

मीटर गैज -

1869 में लोर्ड मेयो ने जो कि भारत के वायसरॉय थे, एक फरमान जारी किया था कि भारत में भी रेलवे सिस्टम होना चाहिए और ट्रेन के डिब्बे में 4 व्यक्ति आराम से बैठ सकें इसलिए उसकी चौड़ाई 6 फूट 6 इंच होनी चाहिए. ट्रेन के ट्रेक का माप उसके 50% से कम नहीं होना चाहिए यानी कि 3 फूट 3 इंच. इसको मिलीमीटर में बदलने पर माप आता है 990 मिमी.

अंग्रेज उस समय भारत में मैट्रिक पद्धति ला रहे थे, इसलिए उन्होनें ट्रेक का माप सुविधा के लिए 1000 मिमी. यानी 1 मीटर कर दिया और इस तरह बना मीटर गैज ट्रेक का माप. भारत ने भी 1957 में माप की मैट्रिक प्रणाली को अपना लिया. भारत में आज 11,000 किमी से अधिक के ट्रेक मीटर गैज ही हैं.

ब्रोड गैज -

भारत में ब्रोड गैज ट्रेक का माप 5.5 फूट का होता है परंतु इंग्लैंड में जो स्टैंडर्ड गैज अपनाया गया था उसके ट्रेक का माप थोडा विचित्र यानी कि 4 फूट 8.5 इंच था. प्रश्न यह है कि इंग्लैंड ने इतने अटपटे माप को क्यों अपनाया? इसका जवाब इतिहास मे मिलता है. रोमन लोग अपने रथों के पहियों के बीच की दूरी को 4 फूट 8.5 इंच पर ही रखते थे, क्योंकि दो घोडों को आपस में टकराए बिना एक साथ दौडते रहने के लिए एक दूसरे से कम से कम इतना दूर होना जरूरी होता है.

रोमनों ने जब इंग्लैंड पर कब्जा किया तो उन्होनें वहाँ के मार्गों पर भी अपने रथ दौड़ाए. समय बीतने पर अंग्रेजों ने उसी माप की बग्गी बनाई और वर्षों तक उसका इस्तेमाल किया. इसके बाद पहले वाष्प इंजिन को जब बनाया गया तो उसका माप भी यही था. अंत में ज्योर्ज स्टीफंस ने पहला रेल इंजिन रॉकेट बनाया और उसकी चौड़ाई भी यही थी.

वर्ष 2010 की 7 सबसे बडी पुरातत्व खोजें

वर्ष 2010 की 7 सबसे बडी पुरातत्व खोजें 

 

अपने पूर्वजों और अपने इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करने की उत्सुकता हमें विरासत में मिली है और इससे हमारे आज के जीवन का भी विकास हुआ है. दुनिया में पुरातत्व के क्षैत्र में नित नई खोजें होती रहती है. आर्कियोलोजी पत्रिका ने वर्ष 2010 में हुई सबसे बडी पुरातत्व खोजों की सूचि जारी की है. इस सूचि पर नजर डालें तो पता चलता है कि ये खोजें मात्र जमीन और पानी के भीतर ही नहीं बल्कि लेबोरेटरी में भी की गई थी.

इस पत्रिका के अनुसार इस वर्ष हुई सबसे बडी पुरातत्व खोज ग्वाटेमाला की शाही कब्र है. इसके अलावा लेबोरेटरी में की गई रेडियोकार्बन डेटिंग तकनीक के नए परीक्षणों को भी इस सूचि में स्थान मिला है. इस तकनीक की मदद से वैज्ञानिक अवशेषों को किसी भी प्रकार का नुकसान पहुँचाए बिना उनके जीवन में आने की तिथि का पता लगा सकते हैं.

बहरहाल यह हैं वर्ष 2010 में हुई पुरातत्व विज्ञान से संबंधित 7 सबसे बडी खोजें
-

  • 1. हेक्टोम्नस की कब्र, तुर्की
  • 2. पेलियोलिथिक उपकरण, प्लाकियास क्रेक
  • 3. शाही कब्र, ग्वाटेमाला
  • 4. शुरूआती पिरामीड, पेरू
  • 5. एचएमएस खोजी जहाज, कनाडा
  • 6. नींदरथल जीनोम की डिकोडिंग, जर्मनी
  • 7. बच्चों की हत्या के प्रमाण, ट्युनिशिया

 

7 वेबसाइटें जिनसे दुनिया बदल गई!

7 वेबसाइटें जिनसे दुनिया बदल गई! 

 

ये वे वेबसाइटें हैं जिनके बिना आज इंटरनेट और जीवन की कल्पना करना मुश्किल है. जिस किसी व्यक्ति ने एक बार भी इंटरनेट का इस्तेमाल किया होगा उसने इन सभी अथवा इनमें से अधिकतर साइटों को ब्राउज़ किया ही होगा. ये वे साइटें हैं जो अपने आप में एक मिसाल हैं -



विकीपीडिया

जानकारी प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है विकीपीडिया. आज किसी भी विषय पर आधारित खोज कीजिए और पहला लिंक आपको विकीपीडिया का ही मिलेगा. विकीपीडिया के आगमन से पहले भी ओनलाइन इंसिक्लोपीडिया तो कई थे, लेकिन उन सभी में कम ही जानकारियाँ होती थी और उनका इस्तेमाल कठीन था.

लेकिन विकीपीडिया के आगमन के साथ ही पूरी परिस्थिति बदल गई. विकीपीडिया एक मुक्त ज्ञानकोष है. इसे कोई भी व्यक्ति सम्पादित कर सकता है और लाखों स्वयंसेवकों की वजह से हर दिन इसका ज्ञानकोष का कद कई गुना बढ रहा है.

आज यह ज्ञानकोष मात्र अंग्रेजी ही नहीं लगभग हर भारतीय तथा अन्य वैश्विक भाषाओं में उपलब्ध है.

शुरूआत : 15 जनवरी 2001
निर्माता : जिम्मी वालेस, लैरी सैंगर
भाषाएँ : 240



हॉटमेल

आज की नई पिढी शायद इस नाम को ना पहचाने या पहचाने भी तो ध्यान ना दे, परंतु हॉटमेल ने किसी समय ईमेल की परिभाषा को ही बदल दिया था. हॉटमेल से पहले ईमेल करना और ईमेल प्राप्त करना दुरूह कार्य होता था. ओनलाइन ईमेल क्लाइंट सोफ्टवेर उपलब्ध नहीं था. आप जब ईमेल को अपने एक पीसी पर डाउनलोड करते तो रिमोट सर्वर से वह डिलिट हो जाता. यानी कि एक ईमेल एक ही स्थान पर देखा जा सकता था.

हॉटमेल ने वेबमेल की शुरूआत की. हॉटमेल को किसी भी पीसी से ब्राउज़ किया जा सकता था. किसी मेल को कितनी भी बार किसी भी स्थान से खोला जा सकता था. शब्बीर भाटिया और कुछ अन्य लोगों की इस खोज ने ईमेल करने के तौर तरीकों को बदल दिया. बाद में माइक्रोसोफ्ट ने हॉटमेल को खरीद लिया और अब यह ब्रांड समाप्त हो चुका है और उसकी जगह माइक्रोसोफ्ट लाइव मेल ने ले ली है. लेकिन हॉटमेल को लोग आज भे याद करते हैं.

शुरूआत : 4 जुलाई, 1996
निर्माता : शब्बीर भाटिया तथा अन्य

अधिग्रहण : माइक्रोसोफ्ट


फेसबुक

फेसबुक विश्व की सबसे लोकप्रिय सोश्यल नेटवर्किंग साइट है. अमेरिका जैसे देश में तो इसने गूगल को भी पीछे छोड़कर सबसे लोकप्रिय साइट होने का गौरव भी प्राप्त कर लिया है. फेसबुक के प्रयोक्ता करोड़ों में हैं और कई लोगों का तो दिन और रात फेसबुक पर ही बीतता है.

लेकिन फेसबुक पहली सोश्यल नेटवर्किंग साइट नहीं थी. लेकिन इसने सोश्यल नेटवर्किंग के सिद्धांत को बदला. फेसबुक ने थर्ड पार्टी अप्लिकेशनों को मंजूरी देकर अपनी लोकप्रियता में तेजी से बढोत्तरी की. फेसबुक लोकप्रिय बना रहा क्योंकि उसने खुद को समय के हिसाब से बदला.

शुरूआत : 4 फरवरी, 2004
निर्माता : मार्क ज़करबर्ग



ट्विटर
क्या राजनेता, क्या अभिनेता, क्या समाज सेवक, क्या धर्म गुरू, क्या आम नागरिक. आज हर कोई ट्विटर पर मौजूद है. 140 अक्षरों के साथ आप दुनिया भर से जुड जाते हैं. क्या कुछ साल पहले तक कोई कल्पना कर सकता था कि एक सामान्य व्यक्ति बिल गेट्स, प्रियंका चोपड़ा, शशि थरूर आदि कई नामी गिरामी हस्तियों से सीधे सवाल पूछ सकता है और उसे अमूमन जवाब भी मिलता है!

यह ट्विटर का कमाल है, जिसने आम और खास का भेद मिटा दिया है. अब हर “खास” आदमी ट्विटर के माध्यम से आम दुनिया से जुडना चाहता है. दुनिया भर की सरकारें इस सेवा से डरने लगी है क्योंकि सूचना का अति तेज माध्यम पल भर में पल पल की खबर दुनिया के कोने कोने में पहुँचा रहा है.

ट्विटर आज जीवन का एक हिस्सा बन गया है.

शुरूआत : 2006
निर्माता : जैक डोर्सी, इवान विलियम्स, बिज़ स्टोन



यूट्यूब

यूट्यूब ने मनोरंजन के मायने बदल दिए. यूट्यूब से पहले ओनलाइन वीडियो देखने का कोई अच्छा माध्यम नहीं था. यूट्यूब की शुरूआत जब हुई तब भारत में काफी कम बैंडविथ ही उपलब्ध थी और लोग सोचते थे कि यह साइट नहीं चलेगी, क्योंकि भारी भरकम वीडियो लोग देखेंगे कैसे? लोग अपनी साइटों पर वीडियो अपलोड नहीं करते थे, क्योंकि इससे उनका बैंडविथ खर्च अतिशय बढ जाता.

लेकिन यूट्यूब के आगमन के साथ ही परिस्थिति बदल गई. यूट्यूब ने लोगों को चौंका दिया. अब मुफ्त में वीडियो अपलोड किए जा सकते थे और उन्हें किसी भी साइट पर लगाया भी जा सकता था.

आज गूगल द्वारा अधिग्रहित कर ली गई इस सेवा पर हजारों वीडियो रोजाना अपलोड होते हैं और लाखों लोग उन्हें देखते हैं.

शुरूआत : फरवरी 2005
निर्माता : चाड हर्ली, जावेद करीम, स्टीव चैन
अधिग्रहण : गूगल (2006)



गूगल

नाम ही काफी है. इंटरनेट की सामान्य सी समझ रखने वाला शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जिसे गूगल के बारे में पता नहीं होगा. गूगल यानी खोज, खोज यानी गूगल. लोग यही तो कहते हैं- अच्छा फँलानी जानकारी चाहिए? गूगल कर लो ना!

आज इंटरनेट पर चाहे जो करते हों, एक ना एक बार गूगल पर जरूर जाते होंगे. गूगल पर खोज ना भी करें तो उसकी असंख्य मुफ्त सेवाओं का इस्तेमाल तो करते ही होंगे. जीमेल है, रीडर है, ब्लॉग स्पोट है, पिकासा है, यूट्यूब है... सूचि लम्बी है. सोचिए!

शुरूआत : 4 सितम्बर 1998
निर्माता : सर्जेई ब्रिन, लॉरेंस पैज



एमेज़न

खरीददारी ऐसे भी हो सकती है! बिना दुकान में जाए, घर बैठे. बस लोगिन कीजिए, अपनी पसंद का उत्पाद चुनिए, क्रेडिट कार्ड से भुगतान कीजिए और हो गया! घर बैठे आपको अपना सामान मिल जाएगा. एमेज़न ने लोगों की खरीददारी की आदत को बदल दिया. आज इंटरनेट पर असंख्य ओनलाइन शोपिंग साइटें है. लेकिन इस उद्योग की नीवं एमेजन ने रखी थी.

शुरूआत : 1994
निर्माता : जैफरी बिज़ोज

 

26 जनवरी की कहानी, गणतंत्र दिवस कभी ‘स्वतंत्रता दिवस’ भी था

26 जनवरी की कहानी, गणतंत्र दिवस कभी ‘स्वतंत्रता दिवस’ भी था 

 

 

26 जनवरी भारत का गणतंत्र दिवस है. सन 1950 में इसी दिन देश के संविधान को लागू किया गया था. तब से आज तक इस दिन को देश गणतंत्र दिवस के तौर पर मनाता है.      

211 विद्वानों द्वारा 2 महिने और 11 दिन में तैयार भारत के सँविधान को लागू किए जाने से पहले भी 26 जनवरी का बहुत महत्व था. 26 जनवरी एक विशेष दिन के रूप में चिह्नित किया गया था.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1930 के लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था परंतु साथ साथ ही एक और महत्वपूर्ण फैसला इस अधिवेशन के दौरान लिया गया. इस दिन सर्वसम्मति से यह फैसला लिया गया था कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन “पूर्ण स्वराज दिवस” के रूप में मनाया जाएगा. इस दिन सभी स्वतंत्रता सैनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे. इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था.

15 अगस्त 1947 में अंग्रेजों ने भारत की सत्ता की बागडोर जवाहरलाल नेहरू के हाथों में दे दी, लेकिन भारत का ब्रिटेन के साथ नाता या अंग्रेजों का अधिपत्य समाप्त नहीं हुआ. भारत अभी भी एक ब्रिटिश कॉलोनी की तरह था, जहाँ कि मुद्रा पर ज्योर्ज 6 की तस्वीरें थी.
आज़ादी मिलने के बाद तत्कालीन सरकार ने देश के सँविधान को फिर से परिभाषित करने की जरूरत महसूस की और सविँधान सभा का गठन किया जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अम्बेडकर को मिली.

25 नवम्बर 1949 को देश के सँविधान को मंजूरी मिली. 24 जनवरी 1950 को सभी सांसदों और विधायकों ने इस पर हस्ताक्षर किए. और इसके दो दिन बाद यानी 26 जनवरी 1950 को सँविधान लागू कर दिया गया. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने.

इस तरह से 26 जनवरी एक बार फिर सुर्खियों में आ गया. यह एक सयोंग ही था कि कभी भारत का पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाने वाला दिन अब भारत का गणतंत्र दिवस बन गया था.

"जय हिंद" - जोशीले नारे की रोचक कहानी

"जय हिंद" - जोशीले नारे की रोचक कहानी 

 

वैसे तो जय हिन्द नारे का सीधा सम्बन्ध नेताजी से है मगर सबसे पहले प्रयोगकर्ता नेताजी सुभाष नहीं थे. आइये देखें यह किसके हृदय में पहले पहल उमड़ा और आम भारतीयों के लिए जय-घोष बन गया.
“जय हिन्द” के नारे की शुरूआत जिनसे होती है उन क्रांतिकारी चेम्बाकरमण पिल्लई का जन्म 15 सितम्बर 1891 को थिरूवनंतपुरम में हुआ था. गुलामी के के आदी हो चुके देशवासियों में आजादी की आकांक्षा के बीज डालने के लिए उन्होने कॉलेज के अभ्यासकाल के दौरान “जय हिन्द” को अभिवादन के रूप में प्रयोग करना शुरू किया.

1908 में पिल्लई आगे के अभ्यास के लिए जर्मनी चले गए.अर्थशास्त्र में पी.एच.डी करने के बाद जर्मनी से ही अंग्रेजो के विरूद्ध क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू की. प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ तो उन्होने जर्मन नौ-सेना में जूनियर अफसर का पद सम्भाला. 22 सितम्बर 1914 के दिन “एम्डेन” नामक जर्मन जहाज से चेन्नई पर बमबारी की. पिल्लई 1933 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में नेताजी सुभाष से मिले तब “जय हिन्द” से उनका अभिवादन किया. पहली बार सुने ये शब्द नेताजी को प्रभावित कर गए.

इधर नेताजी आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना करना चाहते थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने जिन ब्रिटिश सैनिको को कैद किया था, उनमें भारतीय सैनिक भी थे. 1941 में जर्मन की क़ैदियों की छावणी में नेताजी ने इन्हे सम्बोधित किया तथा अंग्रेजो का पक्ष छोड़ आजाद हिन्द फौज में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया. यह समाचार अखबारों में छपा तो जर्मन में रह रहे भारतीय विद्यार्थी आबिद हुसैन ने अपनी पढ़ाई छोड़ नेताजी के सेक्रेट्री का पद सम्भाल लिया. आजाद हिन्द फौज के सैनिक आपस में अभिवादन किस भारतीय शब्द से करे यह प्रश्न सामने आया तब हुसैन ने”जय हिन्द” का सुझाव दिया. अंतः 2 नवम्बर 1941 को “जय-हिन्द” फौज का युद्धघोष बन गया. जल्दी ही भारत भर में यह गूँजने लगा, मात्र कॉंग्रेस पर तब इसका प्रभाव नहीं था.

1946 में एक चुनाव सभा में जब लोग “कॉग्रेस जिन्दाबाद” के नारे लगा रहे थे, नेहरूजी ने लोगो से “जय हिन्द” का नारा लगाने के लिए कहा. अब तक “वन्दे-मातरम” ही कॉंग्रेस की अहिंसक लड़ाई का नारा रहा था, अब सुभाष बोस की लड़ाई जिसमें हिंसा का विरोध नहीं था के नारे “जय हिन्द” में भेद खत्म हो गया.

15 अगस्त 1947 को नेहरूजी ने लाल किल्ले से अपने पहले भाषण का समापन “जय हिन्द” से किया. तमामjai-hind-new-delhi डाकघरों को सुचना भेजी गई की डाक टिकट चाहे राजा ज्योर्ज की मुखाकृति की उपयोग में आये उस पर मुहर “जय हिन्द” की लगाई जाये. यह 31 दिसम्बर 1947 तक यही मुहर चलती रही. केवल जोधपुर के गिर्दीकोट डाकघर ने इसका उपयोग नवम्बर 1955 तक जारी रखा. आज़ाद भारत की पहली डाक टिकट पर भी “जय हिन्द” लिखा हुआ था.

“जय हिन्द” अमर हो गया मगर क्रांतिकारी चेम्बाकरमण पिल्लई इतिहास में कहीं खो गए. 

10 चीजें जो आप गूगल वेव पर नहीं कर सकते

10 चीजें जो आप गूगल वेव पर नहीं कर सकते 

 

 

गल ने इसे ‘ईमेल कीलर’ कहा है यानी कि एक ऐसा नया माध्यम जिसके आने के बाद ईमेल करना पूरानी फैशन हो जाएगी! यह गूगल वेव है जिसका प्रीव्यू आम लोगों के लिए उपलब्ध है. यदि आप अभी तक गूगल वेव अकाउंट प्राप्त नहीं कर पाएँ हैं तो यहाँ आवेदन कर सकते हैं अथवा अपने किसी जीमेल प्रयोक्ता मित्र के द्वारा आपको निमंत्रित किए जाने तक इंतजार कर सकते हैं.

गूगल वेव एक ऐसी सेवा है जिसके माध्यम से कई लोग एक साथ चैट कर सकते हैं, डोक्यूमेंट साझा कर सकते हैं, एक साथ किसी प्रोजेक्ट पर चर्चा कर सकते हैं तथा अन्य कई कार्य कर सकते हैं.

लेकिन वेव अभी भी अपने परीक्षण काल से गुजर रहा है और इसमें कई कमियाँ पाई गई हैं.उनमें से 10 प्रमुख कमियाँ –

  1. गूगल वेव में कोई प्रयोक्ता कुछ लिखता है तो उस वेव से जुड़े अन्य लोगों को वह दिखता रहता है. यह रीयल टाइम ड्राफ्टिंग बंद नहीं की जा सकती. [गूगल के अनुसार यह फीचर जोड़ा जाएगा]
  2. वेब में लोगों को जोड़ा तो जा सकता है लेकिन निकाला नहीं जा सकता. इसलिए यदि किसी व्यक्ति को भूल से किसी वेव में शामिल कर लिया जाए तो गडबड हो सकती है. [यह फीचर भी जोड़ा जाएगा]
  3. इस समय कोई भी प्रयोक्ता जो किसी वेव से जुड़ा हो वह संदेशों को सम्पादित कर सकता है. “रीड ओनली” वेव विकल्प उलब्ध नहीं है.
  4. वेव में “अन डू (Ctrl+Z)” सुविधा नही है.
  5. लम्बे वेब में से थोड़ा सा हिस्सा निकाल कर अलग थ्रेड शुरू नहीं के जा सकती. [गूगल के अनुसार यह फीचर जोड़ा जाएगा]
  6. दो वेव को एक साथ जोड़ा नहीं जा सकता
  7. वेव पर आप छूपे हुए (इनविजिबल) नहीं रह सकते
  8. वेब पर आप कोंटेक्ट ग्रुप नहीं बना सकते
  9. अपनी वेव से जुड़े किसी सदस्य को आप उस वेव को “पब्लिक” करने से नहीं रोक सकते. इससे गोपनियता भंग होने का खतरा बना रहता है.
  10. आप ढेर सारे वेव को समायोजित नहीं कर सकते.

 

11 अप्रैल, 1954 - एक विचित्र वजह से विशेष

11 अप्रैल, 1954 - एक विचित्र वजह से विशेष 

 

 

11 अप्रैल, 1954 एक विशेष तिथि है. विशेष इसलिए क्योंकि यह वह दिन था जब कुछ भी "विशेष' नहीं हुआ था. शोधकर्ता इसे 20वीं सदी का सबसे "बोरिंग" दिन मान रहे हैं.


इससे पहले  के दिन को सबसे बोरिंग दिन के रूप में चिह्नित किया गया था, क्योंकि उस दिन बीबीसी रेडियो के पास समाचार ही नहीं थे. समाचारवाचक रेडियो पर आया और उसने उद्घोषणा की कि "आज कोई समाचार नहीं है!" परंतु अब शोधकर्ताओं ने 11 अप्रैल, 1954 को सर्वाधिक बोरिंग दिन के रूप में मान्यता दी है.

कैसे तय किया गया यह दिन -
हर दिन कोई ना कोई घटना होती ही रहती है. परंतु माना गया है कि 1954 के अप्रैल महिने की 11 तारिख को कुछ भी विशेष नहीं हुआ था. शोधकर्ताओं ने इसके लिए 30 करोड महत्वपूर्ण घटनाओं को एक विशेष कम्प्यूटर शोध प्रोग्राम "ट्रु नोलेज" में डाला और गणनाएँ की.

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वीलियम टनस्टाल के द्वारा विकसित इस सोफ्टवेर ने पता लगाया कि 11 अप्रैल, 1954 को 2-3 छोटी मोटी घटनाओं को छोडकर कुछ भी विशेष नहीं हुआ. इस दिन बैल्जियम में चुनाव हुए थे, तुर्की के एक बुद्धिजीवी का जन्म हुआ था और जैक शफलबोटम नामक फूटबॉल खिलाडी का निधन हुआ था. इसके अलावा इस दिन कुछ नहीं हुआ.

तो याद रखिए अगली बार जब 11 अप्रैल आए तो वह दिन सबसे बोरिंग दिन 

 

हमारा दिमाग आवाज़ को देख भी सकता है!

हमारा दिमाग आवाज़ को देख भी सकता है! 

 

 

हमारी आँखे देखना का काम करती है और कान सुनने का. परंतु क्या हम मात्र आवाज़ सुनकर उससे संबंधित वस्तु के आकार का अनुमान लगा सकते हैं. दूसरे शब्दों में क्या हम आवाज़ को सुन सकते हैं? वैज्ञानिकों की राय है कि यह सम्भव है. अभी तक हमने हमारे दिमाग के विषय में काफी कम जाना है. हमारे पास कई ऐसी शक्तियाँ है जिसके इस्तेमाल को लेकर हम अनजान हैं.


द मोंट्रियल न्यूरोलोजिकल इंस्टिट्यूट और मैकगिल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि हमारे दिमाग में यह क्षमता है कि वह विशेष रूप से कोड की गई ध्वनि को सुनकर आकार का अनुमान लगा सके. भले ही उस समय आँखें बंद हों.

यह खोज नैत्रहीन तथा जिन लोगों को कम दिखाई देता है उनके लिए काफी उपयोगी साबित हो सकती है. दिमाग के न्यूरोलोजिकल अभ्यास से पता चला है कि हमारा दिमाग अलग अलग स्रोतों से आ रही जानकारियों का मिश्रण कर एक व्यापक और विस्तृत तस्वीर तैयार करता है. इसमें जाने अनजाने जो दृश्य आँखों से देखे जाते हैं वे भी शामिल होते हैं और जो ध्वनियाँ हम कान से सुनते हैं वे भी. तो यदि किसी को कम दिखाई देता है तो वह मात्र सुनकर भी चित्र का अनुमान लगा सकता है. बस उसके लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है.

इस शोध से जुडे जंग क्योंग किम के अनुसार - "यह एक तथ्य है कि ध्वनि की तरंगों के माध्यम से आकार की जानकारी प्रेषित की जा सकती है. यह तब सम्भव हो सकता है जो उन तरंगों को सिस्टमेटिक तरीके से पढा जाए. ऐसा होने पर आकार का अनुमान लगाना सरल हो जाता है."

हमारे दिमाग को इस तरह से तैयार किया जा सकता है कि वह ध्वनि को आकार में बदल सके. परंतु इसके लिए थोड़े और अभ्यास की जरूरत है.

 

क्या ली चिंग यन 256 साल तक जीवित रहा था?

क्या ली चिंग यन 256 साल तक जीवित रहा था? 

 

 

“दीर्घायु का राज़ – शांत हृदय रखो, कछुए की तरह बैठो, कबुतर की तरह चलो और कुत्ते की तरह नींद लो.” यह शब्द हैं ली चिंग यन के. ली चिंग यन अपने आप में एक किवंदिती है और एक रहस्य भी. कुछ लोग इस व्यक्ति को दुनिया में सबसे अधिक समयकाल तक जीवित रहने वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं.

ली चिंग यन ने अपने जीवनकाल में 23 पत्नियों का अंतिम संस्कार किया था और 180 संतानों को जन्म दिया था. उसने कितने सावन देखे? 6 मई 1933 को जब उसकी मृत्यु हुई तब तक उसने 256 साल का जीवन जी लिया था. हालाँकि इस बात का योग्य प्रमाण उपलब्ध नहीं है.

लि चिंग यन का जन्म चीन के शेज़ियाँ प्रांत में हुआ था और यहीं उसने अपना जीवनकाल व्यतीत भी किया. लि चिंग प्राकृतिक चिकित्सक था और जड़ी बुटियों के द्वारा लोगों का इलाज करता था. इसके अलावा वह मार्शल आर्ट का विशेषज्ञ भी था. उसका दावा था कि उसका जन्म 1734 में हुआ था. इस लिहाज से देखें तो उसने 199 वर्ष की आयु प्राप्त की थी.

लेकिन 1933 में न्यूयार्क टाइम्स और टाइम पत्रिका में एक चीनी इतिहासशाष्त्री वु चंग ज़ी का साक्षात्कार प्रकाशित हुआ था. इस साक्षात्कार में वु चंग ज़ी ने 1930 में की गई अपनी शोध का उल्लेख किया. उन्होनें एक अति प्राचीन दस्तावेज खोजा था जिसमें 1827 में चीन की राजाशाही सरकार के द्वारा ली चिंग यन को 150वें जन्मदिवस की बधाई दी गई थी. इस शोध को प्रमाण माना जाए तो यह सिद्ध होता है कि ली चिंग यन अपना जन्मदिवस भूल चुका था और उसका जन्म उसके दावे से कहीं पहले हो चुका था. और जब उसकी मृत्यु हुई तब उसकी उम्र 256 वर्ष की थी.

लेकिन क्या कोई व्यक्ति इतने साल तक जीवित रह सकता है?

भारत और चीन के प्राचीन ग्रंथों में प्राचीन काल में लोगो के द्वारा सदियों का आयुष्य भोगने के अनेकों उल्लेख मिलते हैं. अनेकों जैन तीर्थंकरों के द्वारा लम्बे काल तक जीवित रहने का उल्लेख जैन ग्रंथों में मौजूद है. चीन में भी एक मिथक है कि चेन जन नामक व्यक्ति 443 साल तक जीवित रहा था. हालाँकि आज के जमाने में इस पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है. और चिकित्सा जगत की दृष्टि से देखें तो फिलहाल यह असम्भव भी लगता है.

प्रामाणिक दीर्घायु: यदि प्रामाणिक दृष्टिकोण से देखें तो जेन लुईस कालमेंट नामक एक फ्रेंच महिला ने सबसे लम्बा जीवन पाया था. 1997 में जब उनकी मृत्यु हुई तब उनकी उम्र 122 साल और 167 दिन थी.

लेकिन यह आयु ली चिंग यन के जीवन से आधी ही है. ली चिंग यन ने अपना जीवन काल उस दौर में व्यतीत किया था जब उम्र और जन्म से संबंधित दस्तावेजों को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था. इसलिए ली चिंग यन के जीवनकाल से संबंधित प्रमाण पुख्ता नहीं है और काफी कुछ पुराने मिथकों पर भी निर्भर है.

256 वर्षों का जीवन पाया हो या ना हो, लेकिन ली चिंग यन काफी लम्बे समय तक जीवित रहा था और हमेशा युवा लगता था.

वैज्ञानिकों ने खोजा "दिर्घायु" प्राप्त करने का "अमृत"

वैज्ञानिकों ने खोजा "दिर्घायु" प्राप्त करने का "अमृत" 

 

 

इसे अमृत ही कह सकते हैं क्योंकि इसे पीने से आयुष्य बढ सकता है. हालाँकि इसका परीक्षण इंसानों पर किया जाना बाकी है परंतु एक कोषीय यीस्ट और चूहों पर किया गया परीक्षण सफल रहा है.
वैज्ञानिकों ने पाया कि यदि एमिनो एसिड के एक विशेष मिश्रण को पानी में घोल कर पिलाया जाए तो चुहों का जीवन बढ सकता है. पानी में मिलाए जाने वाले इस मिश्रण को ब्रांच्ड चैइन एमिनो एसिड कहते हैं जिसमें मुख्यत: 20 में से 3 एमिनो एसिड का इस्तेमाल किया गया है. ये तीन एमिनो एसिड कम्पोनेंट हैं - ल्यूसाइन, आइसोल्यूसाइन और वेलाइन. ये तीनों एसिड प्रोटीन बनाने के काम आते हैं.

जिन चूहों को ये तीन एमिनो एसिड के मिश्रण वाला पानी पिलाया गया उन्होनें आम चूहों की अपेक्षा अधिक आयु प्राप्त की. इस शोध से जुडे एंज़ो निसोली के अनुसार - यह अपनी तरह का ऐसा पहला परीक्षण है जिसमें हमने साबित किया है कि एमिनो एसिड का सेवन कराकर चूहों का जीवन बढाया जा सकता है.

अपनी शोध के लिए वैज्ञानिकों ने मध्यम उम्र के स्वस्थ चूहों को ब्रांच्ड चैइन एमिनो एसिड पानी में घोलकर पिलाया. इसी उम्र के कुछ अन्य स्वस्थ चूहों को सादा पानी पिलाया जाता था. वैज्ञानिकों ने बाद में पाया कि जिन चूहों ने कुछ महिनों तक अतिरिक्त एमिनो एसिड मिला हुआ पानी पीया था उन्होनें दीर्घायु प्राप्त की. बाकी चूहों ने जहाँ लगभग 774 दिनों का जीवन जीया, इन चूहों ने 869 दिनों का जीवन प्राप्त किया. यानी 12% अधिक.

एमिनो एसिड के इन कोम्पोनेंट का सेवन करने से हृदय अच्छे से काम करता है और स्नायू मजबूत बनते हैं. इसके अलावा वैज्ञानिकों ने पाया कि इससे SIRT1 जीन भी अधिक क्रियाशील हो जाता है. यह जीन दीर्घायु के लिए जिम्मेदार होता है. यही नहीं इससे रोगप्रतिरोधक क्षमता भी अधिक कार्यशील होती है.

अब इस कोम्पोनेंट का परीक्षण इंसानों पर किया जाएगा. 

क्या हमारा छोटा हो रहा दिमाग हमें बना रहा है मंदबुद्धि

क्या हमारा छोटा हो रहा दिमाग हमें बना रहा है मंदबुद्धि 

 

 

आज से 20000 वर्ष पहले के मानव की अपेक्षा आज के मानव का दिमाग अपेक्षाकृत छोटा हो गया है. इसकी वजह क्या है और क्या इससे हमारी विचारशक्ति पर असर पड रहा है? दुनिया के वैज्ञानिकों की राय इस विषय पर अलग अलग है.

डिस्कवर पत्रिका के अनुसार आज से 20000 वर्ष पहले के मानव के दिमाग के कद की अपेक्षा आज के मानव के दिमाग का घनत्व 1500 क्यूबिक सेंटीमीटर कम हो गया है. यह बदलाव करीब एक टेनिस की गेंद के जितना है. यह बदलाव दोनों लिंग नर और मादा के दिमाग पर लागू हुआ है. क्या इसका असर हमारे सोचने समझने की शक्ति पर पडा है?
 
यूनिवर्सिटी ऑफ वाइसकोंसिन के जॉन हॉक्स के अनुसार ऐसा नहीं है. इंसान का दिमाग छोटा हुआ है परंतु साथ साथ परिष्कृत भी. आज का मानव पहले की अपेक्षा अधिक कार्यकुशल बना है. हॉक्स के अनुसार दिमाग का कद घटना मंदबुद्धि के आने का लक्षण नहीं है. परंतु एक अन्य शोधकर्ता कैथेलिन मैकऑलिफ उनसे सहमत नहीं है. कैथरिन के अनुसार दिमाग के छोटे होने का असर विचारशक्ति पर पडा है.

कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार आज के मानव का जीवन अपेक्षाकृत काफी सरल हो गया है. पहले के मानव को अपना जीवन बचाने और गुजारा करने के लिए अनेक कठिनाईयों का सामना करना पडता था. ठंड से बचने से लेकर खाने का जुगाड़ बनाने तक हर पल मानव को सजग रहना पडता था और इसलिए उसका दिमाग भी बडा था. आज भोजन से लेकर अन्य कई जीवनजरूरी चीजें सर्वसुलभ है और इस वजह से हमारे दिमाग के बढने का क्रम भी रूका हुआ है बल्कि ऊल्टे गियर पर जा रहा है.

यूनिवर्सिटी ऑफ मिसौरी के डेविड गियरी और ड्रु बैली के अनुसार दिमाग के छोटे होने का क्रम तब शुरू हुआ होगा जब इंसान ने समूह बनाकर रहना शुरू किया और परिवारवाद पनपा. परिवार में रहने की कला सीखने की वजह से इंसान के लिए कठिनाईयों का सामना करना थोडा सरल हो गया और उसने दिमाग का इस्तेमाल करना धीरे धीरे कम कर दिया. फलस्वरूप दिमाग का कद बढना रूक गया.

एक ऐसी दवाई जो बुढापे को रिवर्स गीयर में डाल दे

एक ऐसी दवाई जो बुढापे को रिवर्स गीयर में डाल दे 

 

जरा सोचिए कभी ऐसा हो तो.. एक बुजुर्ग व्यक्ति की ढीली पड चुकी चमडी फिर से सख्त होने लग जाए, चेहरे की झुर्रियाँ खत्म हो जाए, बाल फिर से आने लगे, झुकी हुई कमर फिर से सीधी हो जाए... यानी की बुढापा रिवर्स गीयर में चला जाए.


एक वैज्ञानिक ने इस चमत्कार को सत्य साबित कर दिया है. हावर्ड विश्वविद्यालय के ओंकोलोजिस्ट रोनाल्ड डिपीन्हो और उनकी टीम ने अपनी शोध के बाद पाया की एक विशेष एंजाइम को प्रभावित कर बढती उम्र के असर को रोका जा सकता है. इससे इंसान दीर्घायु प्राप्त कर सकता है और उसका बुढापा भी "जवानी" की तरह बीत सकता है. यही नहीं इससे कई घातक बीमारियों जैसे कि अल्ज़ायमर और हृदय संबंधित बीमारियों के होने का खतरा घट जाता है.

परीक्षण -
इस शोध के लिए एक बुढे चूहे को एक विशेष ड्रग दिया गया. दो महिने के ड्रग सेवन के दौरान उसके शरीर के एक एंजायम को प्रभावित किया गया और इससे उसके शरीर में नए कोष जन्म लेने लगे. उसकी चमडी कठोर हो गई. यही नहीं उसकी प्रजनन क्षमता भी फिर से सुचारू हो गई और उसने कई बच्चों को जन्म भी दिया.

टेलोमेरेज़ -
यह शोध जिस आधार पर विकसित की गई है वह है शरीर में पाए जाने वाले टेलोमेरेज़. ये बायोलोजिकल घडियाँ होती हैं जो क्रोमोज़ोम को खत्म होने से रोकती है. समय के साथ ये छोटी और छोटी होती रहती हैं और इससे उम्र संबंधित बीमारियाँ होने लगती है. धीरे धीरे टेलोमेरेज़ इतनी छोटी हो जाती है कि कोष मरने लगते हैं. टेलोमेराज़ नामक एंजायम टेलोमेर को फिर से जागृत कर सकता है परंतु वह शरीर में बंद किया हुआ होता है. डिपीन्हो की टीम ने इस एंजायम को जागृत करने में सफलता पाई और इससे टेलोमेर फिर से जागृत हुए और कोषों में भी नवजीवन का संचार हुआ.

तो क्या बुढापा अब दूर की कौड़ी होगा -
नहीं. इस शोध से यह पता चला है कि एक विशेष एंजायम को प्रभावित कर कोषों में नया जीवन भरा जा सकता है. झुर्रियाँ हटाई जा सकती है और इंसान स्वस्थ महसूस कर सकता है. परंतु उम्र के बढने के साथ कई और लक्षण भी उत्पन्न होते हैं जिन्हें नहीं रोका जा सकता. यानी कि इंसान की अवश्यम्भावी मृत्यु को तो नहीं रोका जा सकता परंतु उसे दुखदायी बनने से रोका जा सकता है.

परंतु इसका अभी और परीक्षण होना बाकी है.

 

पेड़ की डाल पर सो रहा पक्षी नीचे क्यों नहीं गिरता?

पेड़ की डाल पर सो रहा पक्षी नीचे क्यों नहीं गिरता?

 

 

एक पक्षी पेड़ की डाल पर बैठा हुआ है. हमें लगता है कि वह बैठा हुआ जाग रहा है परंतु हो सकता है कि वह नींद में हो. अब प्रश्न यह उठता है कि वह नींद में भी संतुलन कैसे बनाए रखता है और नीचे क्यों नहीं गिरता.

अब कल्पना करते हैं कि हम भी ऐसा ही करें तो. क्या हम हाथों के सहारे डाल से लटक कर नींद ले सकते हैं. यह असम्भव है. इसकी वजह यह है कि हमें डाल को पकडने के लिए प्रयास करना पडता है और नींद में ऐसा प्रयास करना सम्भव नहीं है. इसलिए हम लटक कर नींद नहीं ले सकते. परंतु पक्षियों में यह स्थिति इसकी विपरित होती है.

पक्षी जब पेड की डाल पर बैठते हैं तो उनके पंजों की विशेष सरंचना उन्हें डाल से "बांध" देती है. जैसे ही पक्षी डाल पर बैठता है उसके शरीर के बोझ की वजह से पंजे के स्नायु डाल के ऊपर मजबूती से जुड जाते हैं और फिर जब उसे उडना होता है तो उसे ठीक उसी तरह से प्रयास करना पडता है जिस तरह से हमें लटकने के लिए प्रयास करना पडता है.

यानी कि पक्षी डाल पर बैठ कर आराम से सो सकता है क्योंकि उसके पंजों की "ग्रिप" उसे गिरने नहीं देती. परंतु ऐसी सरंचना हर पक्षी को नहीं मिली. शतुरमुर्ग कभी डाल पर नहीं सो सकता और ना ही बत्तक. क्योंकि उनके पंजों की सरंचना अलग है. वे जमीन पर ही सोते हैं. 

क्या पढने में सरल अक्षर हमारी स्मृति कमजोर बनाते हैं?

क्या पढने में सरल अक्षर हमारी स्मृति कमजोर बनाते हैं? 

 

 वैज्ञानिकों का मत है कि किताबों से अधिक ईबुक की लोकप्रियता लोगों की यादशक्ति पर विपरित प्रभाव डाल रही है. इसके पीछे की वजह है ईबुक रीडर में इस्तेमाल होने वाले अक्षर या फोंट जो कि इस तरह के होते हैं जिन्हें पढना आसान हो और जो स्क्रीन पर सुस्पष्ट दिखे. परंतु इस तरह के फोंट से लिखे लेख को याद रख पाना कठीन हो जाता है.

प्रिंस्टन विश्वविद्यालय द्वारा की गई शोध के नतीजे उस आम धारणा के विपरित आए हैं कि आसान और सुस्पष्ट अक्षरों में लिखे पाठ को पढकर उसे याद रख पाना सरल होता है. इस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपनी जाँच में पाया कि लोग यदि आसान अक्षरों में लिखे पाठ को पढते हैं तो उनका दिमाग एक तरह से ऑटो मोड में चला जाता है और वे उस पाठ को कंठस्त नहीं कर पाते. परंतु वही लेख यदि पढने में थोडी दिक्कत आए ऐसे फोंट में लिखा जाए तो वह पाठ लोगों को याद रह जाता है.

इसकी वजह यह है कि जब कठीन फोंट में लिखे लेख को पढने का कार्य दिमाग को दिया जाता है तो वह प्रक्रिया थोडी लम्बी हो जाती है. दिमाग को उस पाठ को पढने में दिक्कत आती है तो हमारा ध्यान भी काफी जाता है और इससे याद रखने की क्षमता बढ जाती है.

शोधकर्ताओं का मानना है कि Arial और Times New Roman फोंट में लिखे गए लेख पढने में सरल हो सकते हैं परंतु यदि कोई लेख Comic Sans जैसे किसी फोंट मे लिखा गया हो तो उसे याद रख पाना सरल होता है.

क्या नए इलैक्ट्रोनिक गैजेटों की वजह से हो सकती है विमान दुर्घटना

क्या नए इलैक्ट्रोनिक गैजेटों की वजह से हो सकती है विमान दुर्घटना 

 

क्या सैंकडों की संख्या में हवा में उड रहे यात्री जहाजों में से अधिकतर काफी पुराने हो चुके हैं और नए और आधुनिक गैजेटों की वजह से उन्हें कोई खतरा हो सकता है? क्या विमान यात्रा के दौरान गैजेटों का इस्तेमाल करने से हवाई दुर्घटना हो सकती है?

2003 को न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च में एक विमान हवाई अड्डे पर उतरते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. जाँच के दौरान पता चला कि दुर्घटना के समय पायलट अपने मोबाइल फोन से अपने घरवालों के साथ बात कर रहा था.

2007 को अमेरिका में बोइंग 737 उडा रहे एक पायलट ने पाया कि विमान का नेविगेशन सिस्टम बंद हो गया है. परिचारिका ने यात्रियों की जाँच की तो देखा कि एक यात्री अपने जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम का उपयोग कर रहा है. परिचारिका ने उससे निवेदन किया कि वह उसे बंद कर दे. यात्री ने अपना गैजेट बंद कर दिया और विमान का नेविगेशन सिस्टम सुचारू ढंग से चलने लगा.

ऐसे ही कई और उदाहरण सामने आए हैं, जब विमान यात्रा के दौरान गैजेटों का इस्तेमाल करने से विमान  की मशीनों में व्यवधान उत्पन्न हुआ है.

डेली मेल की खबर के अनुसार अधिकतर डिवाइज़ सिग्नल प्रसारित करते हैं और साथ ही साथ इलैक्ट्रोमैगनेटिक तरंगे भी प्रवाहित करते हैं. ये तरंगे विमान के इलैक्ट्रोनिक सिस्टम के साथ छेडछाड कर सकती हैं. पुराने हो रहे विमानों में नए गैजेटों के द्वारा प्रसारित हो रही तरंगो से बचाव की तकनीकें उपलब्ध नही है, और ना ही इस बारे में कोई व्यापक शोध की गई है.

ब्रिटेन से सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ ह्यूज के अनुसार आज के जमाने में गैजेटों की तकनीकें हर सप्ताह बदल जाती है जबकि विमान की तकनीक 20 वर्ष तक भी नहीं बदलती ऐसे में सामंजस्य स्थापित कर पाना कठीन होता है.

अभी तक इस प्रकार का कोई सर्वे नहीं किया गया है कि किस प्रकार के गैजेट की वजह से विमान में किस प्रकार का व्यवधान उत्पन्न हो सकता है. परंतु इसकी आवश्यकता है, वह भी जल्दी.

What is the importance of Guru Punam (Purnima)?

What is the importance of Guru Punam (Purnima)?
Answer: The day of full moon is known as Punam. The Punam of the Ashadh month is known as Guru Purnima. It is also known as Vyas Purnima, in remembrance of Bhagwan Ved Vyas.

In the Sanatan Dharma, he is regarded as the Adi (original) Guru. He is also the greatest rishi in Sanatan Dharma. He classified the Vedas into four – Rg, Yajur, Saam and Atharva. He also wrote the Mahabharat, 18 Purans – of which the Shrimad Bhagwat is considered the most sacred. And the Bhagvad Gita is part of the Mahabharat. The Upanishads and Bhagwat sing the glory of the Guru; one who teaches para vidya – knowledge about pleasing Bhagwan.

On this day Hindus offer pujan of their spiritual Guru. This Guru guides devotees on the spiritual path, leading them to Bhagwan. By our own efforts we cannot reach Bhagwan. Only the true Guru, also known as a Satpurush who has constant rapport with Bhagwan, can guide us.

In Sanskrit, the word “Guru” is made of: “Gu” – which means darkness, ignorance. “Ru” means “remover of.” He guides us by giving us small and important agnas (commands) to remove the maya (ignorance) in our hearts. He then enlightens us. This is the true meaning of “Guru”.
Guru Pujan in Daily Life
Every year, Pramukh Swami Maharaj celebrates Guru Purnima in Bochasan. This year, he will be in Orlando, Florida. Practically however, Swami Bapa has often said, “Strictly obeying the agna of our Guru is true Guru Pujan.” Doing chandlo and offering garlands and extra dandvats to Swami Bapa is important. But more important is that we should introspect and ask ourselves everyday, throughout the whole year, “Am I obeying Swami Bapa’s every command sincerely? Do I do puja, arti, thal, Ekadashi, ghar sabha regularly with true bhakti? Or mechanically? Do I watch T.V., internet, cinema? Do I read books which Swami Bapa would not like? Do I keep bad company – with those who do not believe in Bhagwan? Do I study well in school, do homework regularly? Do I make fun of my school teacher or crack jokes about him?” Our school teachers are regarded as vidya gurus – they give us knowledge of this world (apara vidya). Therefore we should never make fun of them, if we wish to gain knowledge and get high grades. Besides, this does not please Swami Bapa at all. In fact he would be pleased if we did pranams (namaskar) to our schoolteachers every morning.

We should also ask ourselves: Do I read Satsang books daily? Do I offer panchang pranams to my parents and other elders in the home, such as, grandparents, after nitya puja? Do I argue with and disobey my parents frequently? Do I use foul lauguage and swear when I get angry? This is one form of hinsa (sin). Do I backbite and look at faults of other balaks? Do I eat foods, chocolates, any other commercial products, even medications that have gelatin, eggs or things which we should not eat?

So dear balaks, let us resolve to do “Guru Pujan” everyday, by taking niyams to improve our daily life by removing bad habits and swabhavs.




Thanks to http://kids.baps.org/

Spiritual knowladge

 What is DEEPAK?
Ans: Deepak, the holy flame, is a prime element in Hindu worship, because it symbolises the matchless, divine light of Bhagwan. Any auspicious occasion begins with the kindling of a divo. Then, a prayer for blessings is beseeched, ‘O Bhagwan, bless us with divine light and may the light of enlightenment pervade our mind and heart.’
Every Hindu aspires for the divine light of knowledge and freedom from the darkness of ignorance. And with these noble sentiments kindles the holy flame on each new day.

 
 
What is DHOOPSALI?
Ans: An incense stick is kindled to offer a fragrant welcome to the Bhagwan. Its sweet aroma purifies the air and charges it with divinity. It calms and elevates the mind, consciousness and atma to the spiritual plane. And while it burns, the Dhoopsali inspires a lofty message of sacrificing oneself in enriching others with life’s sweet aroma and devotion to Bhagwan.
 
What is SHANKH?
Ans: The sonorous sound of conch shell honours and salutes the Supreme Reality. It signals the victory of good over evil. The sound of welcome. The Shankh is one of ancient India’s 32 natural musical instruments. The devotees blow the Shankh before Bhagwan with sentiments of welcoming Him in their hearts and as a symbol of His divine grace.
Its auspicious sound vibrations destroys any evil element in the surrounding and purifies the air.
 
What is GHANT?
Ans: The bell is India’s ancient religious instrument. The sound of Ghant, Zalar and Nagaru spread the effulgent glory and grandeur of Bhagwan. These divine sounds have the power to awaken the inner vibrations of atma. They drown all mundane thoughts and feelings and inspire pious, divine emotions. The charming, joyous sound of the Ghant herald the presence of Bhagwan. And nature too blossoms with beauty and fragrance to its call. Every heart choruses that the Ghant-naad is the sound of the inner self.
 
What is PRANAAM?
Ans: A symbol of humility and total submission at the holy feet of Bhagwan. Pranaam is an ancient ritual of Hindu Culture. To appreciate Bhagwan’s infinite blessings and favours, the act of joining one’s palms and bowing one’s head is called Pranaam. It is a ceremony venerating the virtues of the holy great, and a petition to be blessed with their lustre.
 
 What is PUSHPANJALI?
Ans: Pushpanjali is an attractive Vedic ritual of devotion and prayer. Every religious ritual concludes with the offering of fragrant flowers in adoration to Bhagwan and Guru. How can Bhagwan, the Master of millions of univeres, be appeased by man’s trivial efforts? Hindu tradition prescribes absolute submission, total servility and profound devotion. Flowers are symbolically offered at Bhagwan’s holy feet with sentiments of appreciation and glory.

Pride for our heritage

Pride for Our heritage

Incridible Human Body

Incredile Human Body

Maths / Reasoning

Vote for Us

Dear Friends,
Now My youth fellow Read my web for guidance so i give him one work for us and from my this work you can make a your life dreams truth full.
On this election we have to decide that at list five person i have to convince for VOTING.
And if we do this 100% VOTING can be done and we also choose right person for our new life dream PM.

Don't exploit by anyone and support our leader by giving him a majority of voters and votes.


Maine Kadam Badhaya hai Aap bhi Badhaiye.....


kyunki Ab ki baar public ki Sarkar...

Don't Forgot to Vote....

30th April Morning 7:00 A.M to 6:P.M for choose Our PM......

And Garmi ka Dhyaan Rakhe aur paani ki b vyvastha kare....


Thanks to all my Friends if they done or not done...



-Jay bhojak

UPSC SPECIAL-1

Dear IAS Students,
We have been getting many emails, asking about the meaning and differences between the questions that starts with terms like- Evaluate, Examine, Critically Discuss etc.

It is important to know precisely what the question asks, in order to answer it adequately. Most of the time, a candidate is unable to comprehend what the question expects of the candidate. Thus, the candidate makes a wild guess and writes down whatever comes to his/her mind. However, this might badly backfire, and result in lower marks, ultimately disappointing you.
Many candidates are confused after reading questions that are in the form of- 'Evaluate, Examine, Analyze, Critically Discuss, and Outline......'
It should be kept in mind that these terms are not synonymous, though there meaning may, at times, overlap

:: Evaluate ::

Questions asking you to evaluate some issue expect you to judge the significance and worth of the topic under some criterion. Thus, merely writing the factual statements would not help in such questions. While, it might be necessary to provide some factual evidence for your arguments, it is more important in such questions to judge the worth of the concept, being discussed, as per the given context.

EXAMPLES- Evaluate the Participation of India in the IMF?

Explanation-

Now, this question does not ask you to write merely about India’s participation in the IMF and various agreements or developments. But, it asks you to write how is India’s participation in the IMF justified. Thus, you cannot fetch good marks merely by giving the details about the Indian participation. You should provide rational reasons regarding the effectiveness and worth of it.

:: Examine ::

These questions are much like the evaluate-type of question, but it requires the candidate to write the different shades of the topic. It requires the candidate to inquire into the topic and make an evaluation from the candidate's perspective.

EXAMPLES- Examine the role of women in the Indian national movement?

Explanation-

This question, expects the candidate to evaluate the different dimensions of the topic, and decide for the aptness of the question. Thus, you should touch the various aspects of the question and provide why and how does it justify itself. thus, for this question you should give the instances of how women participated in the indian national movement, and explain why was it significant.

:: Analyze ::

these questions require the candidate to analyze the topic being asked, with other similar concepts and draw out the characteristic features and qualities, while also highlighting the positive and negative points of the topic.

EXAMPLES- Analyze the role of Panchayats in the empowerment of the poor and marginalized.

Explanation-

To analyze a topic, you should bring out the points both- in favor and against the given argument. Further, you should explain your view, as to how it can be proved with the given evidence. For this question, you should discuss how the panchayats have helped the poor and marginalized section, and what are the various challenges and obstacles for their empowerment under the present framework. Then, at the bend of the answer, you should also conclude your argument by a side.

:: Critically Discuss ::

Questions with the tag of 'critically discuss' are broad-based questions which expects the candidate to write about the topic from his own perspective. In addition, it requires the candidate to bring out the points of criticism regarding the concept.

EXAMPLES- Critically Discuss the developments in the Education sector in India.

Explanation-

For this question, while the first thing a candidate should write is the contemporary situation in the field of education in india, and then move towards the criticism part. It is important to note that for such questions the candidate should also put his own perspective and views. Thus, while highlighting the achievement in the education sector, you should also give the shortcomings and loopholes of the education policy in india.

:: Outline ::

The questions that asks you to outline about the issue, requires you to draw a framework about the topic, with different details and constituents. Such an essay is a descriptive essay containing more facts and less analysis.

EXAMPLES- Give an Outline of the System of Economic Planning in India.

Explanation-

For this question, you should give a detailed sketch of the evolution of the system of economic planning in india. You may advance in a historical chronology or according to the various planning frameworks. However, it is beneficial if you also provide an evaluation of the topic, in the latter section of the essay.

We advice to the IAS aspirants to keep in mind, the meaning of the different terms, while writing any exam in the future. We are open for suggestions and questions from the aspirants.
We wish the candidates, All the Best!!


Thanks To UPSC PORTAL TEAM....
click here for more....
http://upscportal.com/civilservices/getting-started

રવિવાર, 20 એપ્રિલ, 2014

મારે ફરી એકવાર શાળાએ જવું છે

મારે ફરી એકવાર શાળાએ જવું છે.

મારે ફરી એકવાર શાળાએ જવું છે.
દોડતાં જઈને મારી રોજની પાટલીયે બેસવું છે, અને

પાટલી પર બેસવા એ મીઠા ઝગડા દોસ્તારો સાથે કરવા છે.
રોજ સવારે ઊંચા અવાજે રાષ્ટ્રગીત ગાવું છે.
નવી નોટની એ મહક લેતાં પહેલા પાને ,સુંદર અક્ષરે મારું નામ લખવું છે.

ચોપડીના અંદરના પાને  મનમાં આવતા  વિચારો ને ચિત્ર કાર બની વ્યકત કરવા છે.

આ ચિત્ર સાહેબની નજરમાં પડી જાય તો એ હળવો મેથી પાક મારે ખાવો છે.

મારા એ સાહેબોના વિવિધ નામો પાડવા છે અને ટીખળો કરવા
મારે ફરી એકવાર શાળાએ જવું છે…!!

વર્ગમાં કાગળના એ ડુચા બનાવી મિત્રોને મારવા છે. મસ્તીથી પેનના લીસોટા શર્ટ પર પાડવા છે ઘેર આવી મમ્મીનો એ મીઠો ઠપકો સાંભળવા

મારે ફરી એકવાર શાળાએ જવું છે…!!
રીસેસ પડતાં જ વોટરબેગ ફેંકી , નળ નીચે …હાથ ધરી પાણી પીવું છે.
જેમ તેમ લંચબોક્સ પૂરું કરી..
મરચુ મીઠું ભભરાવેલ આમલી-બોર-જમરુખ- કાકડી બધું ખાવું છે.

મારે ફરી એકવાર શાળાએ જવું છે…!!
સાઈકલના પૈડાની સ્ટમ્પ બનાવી ક્રિકેટ રમવું છે,
કાલે વરસાદ પડે તો નીશાળે રજા પડી જાય ,એવાં વિચારો કરતાં રાતે સુઈ જવું છે ,
અનપેક્ષીત રજાના આનંદ માટે…
મારે ફરી એકવાર શાળાએ જવું છે..!
છૂટવાનો ઘંટ વાગવાની રાહ જોતાં , મિત્રો સાથે ગપ્પાં મારતાં વર્ગમાં બેસવું છે.
ઘંટ વાગતાં જ મિત્રોનું કુંડાળુ કરીને , સાઈકલની રેસ લગાવતાં ઘેર જવું છે.
રમત-ગમતના પીરીયડમાં તારની વાડમાંના બે તાર વચ્ચેથી સરકી બહારભાગી જવું છે.
તો ભાગી જવાની મોજ અનુભવવા…
મારે ફરી એકવાર શાળાએ જવું છે..!
દીવાળીના વેકેશનની રાહ જોતાં , છ માસીક પરીક્ષાનો અભ્યાસ કરવો છે.
દીવસભર કિલ્લો બાંધીને માટીને પગથી તોડી , હાથ ધોયા વિના ફરાળની થાળી પર બેસવું છે. રાતે ઝાઝા બધા ફટાકડા ફોડ્યા પછી , તેમાંથી ન ફૂટેલા ફટાકડા શોધતાં ફરવું છે.
વેકેશન પત્યા પછી બધી ગમ્મતો દોસ્તોને કહેવા… મારે ફરી એકવાર શાળાએ જવું છે…!
કેટલીયે ભારે જવાબદારીઓના બોજ કરતાં , પીઠ પર દફતરનો બોજ વગાડવો છે.
ગમે તેવી ગરમીમા એરકંડીશન્ડ ઓફીસ કરતાં , પંખા વીનાના વર્ગમાં બારી ખોલીને બેસવું છે. કેટલીયે તૂટ્ફૂટવચ્ચે ઓફીસની આરામદાયક ખુરશી કરતાં ,બે ની પાટલી પર ત્રણ દોસ્તોએ બેસવું છે.
બચપણ પ્રભુની દેણ છે તુકારામના એ અભંગનો અર્થ હવે થોડો સમજમાં આવવા માંડ્યો છે.
એ બરાબર છે કે નહી તે સાહેબને પુછવામાટે…
મારે ફરી એકવાર શાળાએ જવું છે..!
નાનો હતો ત્યારે જલ્દી મોટા થવું હતું…
આજે જયારે મોટો થયો છે કે “તૂટેલા સ્વપ્નો” અને “અધુરી લાગણીઓ” કરતા”તૂટેલા રમકડા” અને “અધૂરા હોમવર્ક” સારા હતા..
આજે સમજાય છે કે જયારે “બોસ” ખીજાય એના કરતા શાળા માં શિક્ષક “અંગુઠા” પકડાવતા હતા એ સારું હતું…
આજે ખબર પડી કે ૧૦-૧૦ રૂપિયા ભેગા કરી ને જે નાસ્તાનો જે આનંદ આવતો હતો એ આજે “પીઝા” મા નથી આવતો…
ફક્ત મારેજ નહી તમારે પણ ફરી શાળાએ જવુ છે ?

ગુજરાતનો ઇતિહાસ

ગુજરાતનો ઇતિહાસ

ગુજરાત-મહાવીરોની ધરતી
ગુજરાત ભારતના પશ્ચિમ કિનારે આવેલું છે. જેનો ઉત્તર સીમા પાકિસ્‍તાન અને રાજસ્‍થાન સાથે પૂર્વ સીમા મધ્‍યપ્રદેશ સાથે, દક્ષિણ સીમા મહારાષ્‍ટ્ર, કેન્‍દ્રશાસિત પ્રદેશ દિવ, દમન, દાદરા અને નગર હવેલી અને પૂર્વ અને દક્ષિણ સીમા અરબી મહાસાગર સાથે જોડાયેલી છે.

ગુજરાત : રાજ્યનું નામ ગુજરાત ગુજ્જર, પરથી પડેલ છે. જેમણે ઇ.સ. ૭૦૦ અને ઇ.સ. ૮૦૦ દરમિયાન અહીં રાજ કર્યું હતું.

પ્રાચીન ઇતિહાસ
સૌ પ્રથમ ગુજરાત પ્રાંતમાં ગુજ્જરોએ વસવાટ કર્યો. જે ભારત અને હાલના પાકિસ્‍તાન અને અફઘાનિસ્‍તાનનો ભાગ છે. હુણોએ ઉત્તર ભારત અને સૌરાષ્‍ટ્રના આક્રમણ કર્યું. તે જાતિના નામ પરથી ગુજર થયું. જે પછીથી હિંદુ, મુસ્‍લિમ, ખ્રિસ્‍તી અને શીખ ધર્મમાં પરિવર્તિત થયું.

ભૂસ્તર શાસ્‍ત્રીઓને ભૂમિ ઉત્ખનન દરમિયાન પાષણ યુગના અવશેષો ગુજરાતની ભૂમિમાંથી તેમજ સાબરમતી અને મહી નદી પાસેના પ્રદેશમાંથી મળી આવ્‍યા. હડપ્‍પા સંસ્‍કૃતિ સમયના શહેરો લોથલ, રામપુર, અચરજ અને બીજા જગ્‍યાઓના પણ અવશેષો મળી આવેલ છે.

પ્રાચીન ગુજરાત પર મોર્ય શાસકે પણ શાસન કરેલું. ગુજરાતના કેટલાક સ્‍થળો સમ્રાટ ચંદ્રગુપ્‍ત મોર્યએ જીતેલા. જ્યારે તેના પૌત્ર સમ્રાટ અશોકે તેમાં વિસ્‍તાર કરેલો. શરૂઆતના ત્રણ મૌર્યના સ્તૂપો મળી આવેલ હતાં. ઇ.સ. પૂર્વ ૨૩૨ સમ્રાટ અશોકનું મૃત્‍યુ થવાથી તેના સામ્રાજ્યમાં રાજકીય મતભેદોને લીધે તે અંત તરફ આગળ વધ્‍યું. રાજા શુંગારુએ રાજકીય કૂનેહથી મૌર્ય સામ્રાજ્યનો અંત કર્યો.

મૌર્ય સામ્રાજ્યના પતન પછી કેથેલિસ્‍ટએ આ પ્રાંતમાં ઇ.સ. ૧૩૦થી ૩૯૦ શાસન કર્યું. રૂદ્ર દમનના શાસન હેઠળ સામ્રાજ્યમાં માલવા (મધ્‍યપ્રદેશ), સૌરાષ્‍ટ્ર, કચ્‍છ અને રાજસ્‍થાન મેળવ્‍યા. ઇ.સ. ૩૦૦થી ૪૦૦ દરમિયાન આ વિસ્‍તાર ગુપ્‍ત સામ્રાજ્યના તાબા હેઠળ આવ્‍યું જે પછીથી મૈત્રકા નામથી ઓળખાયું. ધ્રુવસેનાના શાસન કાળ દરમિયાન મહાન ચાઇનીઝ પ્રવાસી અને વિચારક હુ-એન-ત્‍સાંગએ ઇ.સ. ૬૪૦માં ભારતની મુલાકાત લીધી.

મૌર્ય સામ્રાજ્યના પતન અને સંપ્રતી સૌરાષ્‍ટ્ર આવવાના દરમિયાન, ડેમેટ્રીસ્‍ટના તાબા હેઠળ ગ્રીક આક્રમણ ગુજરાત પર થયેલ હતું. સ્‍થાનિય રજવાડાઓની સંખ્‍યા ૨૩ હતી. તેમાના મુખ્‍ય ત્રણ હિન્‍દુ રજવાડાઓ ચાવુરા, સોલંકી અને બાઘીલાહ હતા તેમણે ભારત પર ૫૭૫ વર્ષ સુધી શાસન કર્યું. જ્યારે ગુજરાત મોહંમેદન્‍સના કબ્‍જામાં હતું. ચવુરા જાતિએ ૧૯૬ વર્ષ સુધી શાસન કર્યું. તેમના પછી સોલંકી જાતિએ શાસન કર્યું.

ઇ.સ. ૯૦૦ દરમિયાન સોલંકી શાસન આવ્યું. સોલંકી શાસન દરમિયાન ગુજરાતનો સૌથી વિશાળ વિસ્‍તાર તેમના તાબામાં હતું. ગુર્જરો સોલંકી જાતિની સાથે સંકળાયેલ હતાં. કારણકે પ્રતિહારાઓ, પરમારો અને સોલંકી ગુજરોને મળતા આવે છે. પ્રાચીન ગુજરાતના છેલ્‍લા હિન્‍દુ શાસક સોલંકી અને રાજપુત હતા. જેમણે ઇ.સ. ૯૬૦ થી ૧૨૪૩ સુધી શાસન કર્યું. એમ માનવામાં આવે છે કે ગુજરાતના છેલ્‍લા હિન્‍દુ શાસક કરનદેવ વાઘેલા ઇ.સ. ૨૯૭માં દિલ્‍હીના સુલતાન અલાદ્દીન ખીલજીથી પરાજય પામ્‍યા હતાં.

મધ્‍યકાલીન આક્રમણો :
મુસ્‍લિમોનું શાસન ૪૦૦ વર્ષ સુધી રહ્યું. ઝફરખાન મુઝફ્ફરે તે સમયના નબળા દિલ્‍હીના સુલતાનનો ફાયદો ઉઠાવીને ગુજરાતનો પહેલો સ્‍વતંત્ર સુલતાન બન્‍યો. તેણે પોતાનું નામ મુઝફ્ફર શાહ જાહેર કર્યું. અહમદ પહેલો, જેણે ગુજરાત પ્રાંતમાં પ્રથમ સ્વતંત્ર મુસ્‍લિમ શાસક તરીકે ઇ.સ. ૧૪૧૧માં સાબરમતી કિનારે અમદાવાદ વિકસાવ્‍યું.

આ અગાઉ, ઇ.સ. ૧૦૨૬ મોહંમદ ગજનીએ ગુજરાત પર આક્રમણ કર્યું. તે મૂર્તિ પૂજાનો વિરોધી હતો. તેણે રાજ્યમાં મૂર્તિઓનો નાશ કરાવ્યો, કાફિરોને માર્યા, યુદ્ધમાં પકડાયેલા સૈનિકોને બંદી બનાવ્યા અને સમૃદ્ધ ગુજરાતની સંપત્તિની લૂંટ ચલાવી. જે સંપત્તિ - વૈભવ માટે ગુજરાત જગ મશહુર હતું. ત્યારબાદ અલાઉદ્દીન ખીલજી ઇ.સ. ૧૨૯૮માં ગુજરાતમાં આવ્‍યો.

ગુજરાતના તત્કાલિન સુલતાન ઇ.સ. ૧૫૭૬ સુધી સ્‍વતંત્ર રહ્યા. મુગલ સમ્રાટ અકબરે ગુજરાતને મુગલ સામ્રાજ્યમાં ભેળવી દીધું. તેણે મલવા અને ગુજરાતને મુગલ સામ્રાજ્યમાં ઇ.સ. ૧૫૭૦માં સામેલ કર્યા. મુગલોએ બે સદીઓ સુધી શાસન કર્યું. ૧૮મી સદીના મધ્‍યમાં મહાન મરાઠા સેનાપતિ છત્રપતિ શિવાજીએ પોતાના પ્રભાવ અને કૂનેહથી ગુજરાત પ્રાંન્ત કબજે કર્યો.

અદ્યતન પદ્ધતિનો પ્રભાવ :
ઇ.સ. ૧૬૦૦માં ડચ, ફ્રેન્‍ચ, અંગ્રેજ અને પોર્ટુગીઝ, દરેક ગુજરાતના દરિયા કિનારેથી આવ્યા અને પોતાના વિસ્‍તારો વિકસાવ્‍યા જેમાં દમણ, દીવ અને દાદરા અને નગરહવેલીના પ્રદેશો મુખ્ય હતાં.

બ્રિટિશ ઇસ્‍ટ ઇન્‍ડિયા કંપનીએ પોતાના વેપારી કામકાજો ઇ. સ. ૧૬૧૪માં સુરત ખાતે શરુ કર્યા. પરંતુ ઇ.સ. ૧૬૬૮ પોર્ટુગીઝે પાસેથી મુંબઇનો કબજો લીધા બાદ તેઓએ તેમના વેપારી કામકાજો મુંબઇ લઇ ગયા. કંપનીએ ગુજરાતના મોટા ભાગનો અંકુશ મરાઠા શાસક પાસે રહ્યો. ઘણા સ્‍થાનિક શાસક જેમકે વડોદરાના મરાઠા ગાયકવાડ પોતાની શાંતિવાર્તા બ્રિટિશ સરકાર સાથે કર્યા બાદ બ્રિટિશ શાસન હેઠળ તેમણે પોતાનું શાસન ચલાવ્‍યું.

ગુજરાતની શાસન વ્‍યવસ્‍થા તત્કાલિન બોમ્‍બેના શાસક દ્વારા કરવામાં આવતી હતી. જેમાં વડોદરા સામેલ ન હતું, જે સીધા જ ભારતના ગર્વનર જનરલના તાબા હેઠળ હતું. ઇ.સ. ૧૮૧૮થી ઇ.સ.૧૯૪૭ દરમિયાન આજનું ગુજરાત અનેક નાના-નાના વિસ્‍તારો જેવાકે કાઠિયાવાડ, કચ્‍છ અને ઉત્તર પશ્ચિમ ગુજરાતમાં વહેંચાયેલું હતું. પણ ઘણા મધ્‍યના જિલ્‍લા જેવા કે અમદાવાદ, ભરૂચ, ખેડા, પંચમહાલ અને સુરત પ્રાંન્તો સીધા જ બ્રિટિશ સરકારના તાબા હતાં.

મોહનદાસ કરમચંદ ગાંધીના સ્‍વતંત્રતાના આંદોલનથી નવા યુગની શરૂઆત થઇ. જેમાં તેમની સાથે સરદાર વલ્‍લભભાઇ પટેલ, મોરારજી દેસાઇ, મોહનલાલ પંડયા, ભુલાભાઇ દેસાઇ, રવિશંકર મહારાજ વગેરે જેવા ગુજરાતી નેતાઓએ આપ્‍યો. ગુજરાત ઘણી રાષ્ટ્રીય ઘટનાઓનો સાક્ષી રહ્યો છે. સત્‍યાગ્રહ, બારડોલીનો સત્‍યાગ્રહ, બોરસદનો સત્‍યાગ્રહ અને મીઠાનો સત્‍યાગ્રહ.

મહાગુજરાત આંદોલન :
સ્‍વતંત્રતા પછી ઇ.સ. ૧૯૪૮માં મહાગુજરાત સંમેલન થયું જેમાં ગુજરાતી બોલનાર વસ્‍તી ધરાવતા વિસ્‍તારે પોતાના અલગ રાજ્યની માંગ કરી અને ઇ.સ. ૧૯૬૦, ૧લી મેના રોજ સંયુક્ત મુંબઇ-ગુજરાતનું વિભાજન કરી મહારાષ્‍ટ્ર અને ગુજરાત એમ બે રાજ્યોની અલગ રચના કરવામાં આવી. ગુજરાતી ભાષા બોલનાર વિસ્‍તારમાં ગુજરાત, સૌરાષ્‍ટ્ર અને કચ્‍છનો સમાવેશ કરાયો. આમ પહેલીવાર ગુજરાતે સ્વાયત રાજ્યનો દરજ્જો મેળવી લીધો.

રાજકીય વ્‍યવસ્‍થા :
ઇ.સ. ૧૯૪૭માં સ્‍વતંત્રતા મેળવ્‍યા બાદ, ઇન્‍ડિયન નેશનલ કોંગ્રેસે મુંબઇ રાજ્ય પર શાસન કર્યું. (બોમ્‍બે આજનું મહારાષ્‍ટ્ર અને ગુજરાત દર્શાવે છે.) વિભાજન બાદ પણ ગુજરાતમાં કોંગ્રેસનું શાસન ચાલું રહ્યું. ઇ.સ. ૧૯૭૫-૧૯૭૭ દરમિયાનમાં લાદવામાં આવેલી કટોકટીને પરિણામે કોંગ્રેસની સ્‍થિતી ગુજરાતમાં નબળી પડી. છતાં પણ કોંગ્રેસે સને ૧૯૯૫ સુધી ગુજરાતમાં રાજ કર્યું.

વિભાજન બાદ ઇ.સ. ૧૯૬૦થી ગુજરાતમાં ૧૪ મુખ્‍યમંત્રી આવ્‍યા. ગુજરાતના પ્રથમ મુખ્‍યમંત્રી ડૉ. જીવરાજ નારાયણ મહેતા બન્યા. જેમણે ૧લી મે ૧૯૬૦થી ૧૯મી સપ્‍ટેમ્‍બર ૧૯૬૩ સુધી શાસન કર્યું. ઇ.સ. ૧૯૯૫ની વિધાનસભાની ચૂંટણીમાં કોંગ્રેસનો પરાજય થયો અને ભારતીય જનતા પાર્ટીના શ્રી કેશુભાઇ પટેલે રાજ્યની શાસન ધૂરા સંભાળી.

સને ૨૦૦૧માં, વર્તમાન મુખ્‍યમંત્રી શ્રી નરેન્‍દ્ર મોદી શાસનમાં આવ્‍યા. ભારતીય જનતા પાર્ટીએ ૨૦૦૨ ની ચુંટણીમાં પણ બહુમત મેળવ્‍યો અને નરેન્‍દ્ર મોદી ૭ ઓકટોબર ૨૦૦૧થી વર્તમાન સમય સુધી મુખ્‍યમંત્રી છે. ૧ જુન, ૨૦૦૭ ના રોજ તેઓ સૌથી લાંબો શાસન કરનાર મુખ્‍યમંત્રી બન્‍યાં.

શિક્ષક એટલે કોણ ?

શિક્ષક એટલે કોણ ?


શિસ્તનો આગ્રહી બને તે શિક્ષક,

અન્યાય સામે ખુમારીવંતા બને તે શિક્ષક,

વિદ્યાર્થીઓ માટે પ્રેરક અને કલાકાર બને તે શિક્ષક,

કર્તવ્યનિષ્ઠા અને ક્ષમાશીલના દાખલા બેસાડે તે શિક્ષક,

શાળારૂપી મંદિરનો પૂજારી બને તે શિક્ષક,

સરસ્વતી માતા અને શારદાનો ઉપાસક બને તે શિક્ષક,

પરિવર્તનો દૂત બને તે શિક્ષક,

મા રૂપી મમતા અને પિતારૂપી જવાબદાર બને તે શિક્ષક,

નિ:સ્વાર્થ બાળપ્રેમ પ્રાપ્ત કરે તે શિક્ષક,

સંસ્કારોનું સિંચન કરે તે શિક્ષક,

પર્યાવરણનું મહત્ત્વ સમજાવે તે શિક્ષક,

એકતા, અખંડિતતા, દેશપ્રેમના પાઠો શીખવે તે શિક્ષક,

સૂર્યરૂપી તેજસ્વીતા અને ચંદ્રરૂપી શીતળતા બક્ષે તે શિક્ષક,

વિદ્યાર્થીરૂપી બાળકમાં માનવતાના ગુણ સીંચે તે શિક્ષક,

રાવણને ‘રામ’, દાનવને ‘માનવ’ બનાવે તે શિક્ષક,

Panchtantra Gujarati E-book


Panchtantra Gujarati E-book

Panchtantra Gujarati E-book
Author: Pandit vishnu sharma
Translator; Vinubhai.U. Patel
Publisher: M. M. Sahitya Prakashan, Mahavir Marg, Anand.
This e - book of Total Page: 236
Total of 14 story in this e - book.
This e - book of children story book.
This e - book can be freely downloaded

Panchtantra Information

Use of this e-book you will be able to tell stories to the children 's sermon. Approximately two thousand years more ancient Pandit vishnu sharma tale world populated Shopping is unique in the literature. Goofy 's three sons, one of only six months, the ethics of performing these stories are entertaining and motivational speak. The stories of the characters, lion , deer , tiger , camel , donkey , fox and a variety of birds are special and There are very few human characters.
Panchtantra Gujarati E-book
Image Source http://spiritualguideforall.blogspot.in

This e - book to inspire you and your friends download
Enjoy for this e - book
To download, click on the following link

DOWNLOAD Click here


पंचायती राज


पंचायती राज
पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम, तालुका, और जिला आते हैं । भारत मे प्रचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व में रही हैं ।
  • पंचायती राज के सम्बन्ध में संवैधानिक प्रवधान -
भारतिय संविधान के अनिच्छेद ४० में राज्यं को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया हैं । १९९३ मैं संविधान में ७३वां संविधान संशोधन अधिनियम एक्ट, १९९२ करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दे दी गयी हैं ।
  • बलवंत राय मेहता समिती की सिफारिशें (1957)-
  • अशोक मेहता समिती की सिफारिशें (1977)-
  • डा. पी.वी.के. राव समिती (1985) -
=पंचायती राज पर एक नजर पंचायती राज का दर्शन ग्रामीण भारत की परंपरा और संस्कृति में गहरे जमा हुआ है। यह ग्राम स्तर पर स्वशासन की प्रणाली की व्यवस्था करता है; पर 1992 तक इसे कोई संबैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं था।
23 अप्रैल, 1993 भारत में पंचायती राज के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मार्गचिन्ह था क्योंकि इसी दिन संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संबैधानिक दर्जा हासिल कराया गया और इस तरह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया गया था।
73वें संशोधन अधिनियम, 1992 में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं:
एक त्रि-स्तरीय ढांचे की स्थापना (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या मध्यवर्ती पंचायत तथा जिला पंचायत) ग्राम स्तर पर ग्राम सभा की स्थापना हर पांच साल में पंचायतों के नियमित चुनाव अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण पंचायतों की निधियों में सुधार के लिए उपाय सुझाने हेतु राज्य वित्ता आयोगों का गठन राज्य चुनाव आयोग का गठन 73वां संशोधन अधिनियम पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के रूप में काम करने हेतु आवश्यक शक्तियां और अधिकार प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को अधिकार प्रदान करता है। ये शक्तियां और अधिकार इस प्रकार हो सकते हैं:
संविधान की गयारहवीं अनुसूची में सूचीबध्द 29 विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना और उनका निष्पादन करना कर, डयूटीज, टॉल, शुल्क आदि लगाने और उसे वसूल करने का पंचायतों को अधिकार राज्यों द्वारा एकत्र करों, डयूटियों, टॉल और शुल्कों का पंचायतों को हस्तांतरण ग्राम सभा
ग्राम सभा किसी एक गांव या पंचायत का चुनाव करने वाले गांवों के समूह की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है।
गतिशील और प्रबुध्द ग्राम सभा पंचायती राज की सफलता के केंद्र में होती है। राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे:-
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार ग्राम सभा को शक्तियां प्रदान करें। गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अवसर पर देश भर में ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए पंचायती राज कानून में अनिवार्य प्रावधान शामिल करना। पंचायती राज अधिनियम में ऐसा अनिवार्य प्रावधान जोड़ना जो विशेषकर ग्राम सभा की बैठकों के कोरम, सामान्य बैठकों और विशेष बैठकों तथा कोरम पूरा न हो पाने के कारण फिर से बैठक के आयोजन के संबंध में हो। ग्राम सभा के सदस्यों को उनके अधिकारों और शक्तियों से अवगत कराना ताकि जन भागीदारी सुनिश्चित हो और विशेषकर महिलाओं तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों जैसे सीमांतीकृत समूह भाग ले सकें। ग्राम सभा के लिए ऐसी कार्य-प्रक्रियाएं बनाना जिनके द्वारा वह ग्राम विकास मंत्रालय के लाभार्थी-उन्मुख विकास कार्यक्रमों का असरकारी ढंग़ से सामाजिक ऑडिट सुनिश्चित कर सके तथा वित्तीय कुप्रबंधन के लिए वसूली या सजा देने के कानूनी अधिकार उसे प्राप्त हो सकें। ग्राम सभा बैठकों के संबंध में व्यापक प्रसार के लिए कार्य-योजना बनाना। ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए मार्ग-निर्देश/कार्य-प्रक्रियाएं तैयार करना। प्राकृतिक संसाधनों, भूमि रिकार्डों पर नियंत्रण और समस्या-समाधान के संबंध में ग्राम सभा के अधिकारों को लेकर जागरूकता पैदा करना। 73वां संविधान संशोधन अधिनियम ग्राम स्तर पर स्व-शासन की संस्थाओं के रूप में ऐसी सशक्त पंचायतों की परिकल्पना करता है जो निम्न कार्य करने में सक्षम हो:
ग्राम स्तर पर जन विकास कार्यों और उनके रख-रखाव की योजना बनाना और उन्हें पूरा करना। ग्राम स्तर पर लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना, इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, समुदाय भाईचारा, विशेषकर जेंडर और जाति-आधारित भेदभाव के संबंध में सामाजिक न्याय, झगड़ों का निबटारा, बच्चों का विशेषकर बालिकाओं का कल्याण जैसे मुद्दे होंगे। 73वें संविधान संशोधन में जमीनी स्तर पर जन संसद के रूप में ऐसी सशक्त ग्राम सभा की परिकल्पना की गई है जिसके प्रति ग्राम पंचायत जवाबदेह हो।



 

 

 

 

 

 

 

खाप

खाप या सर्वखाप एक सामाजिक प्रशासन की पद्धति है जो भारत के उत्तर पश्चिमी प्रदेशों यथा राजस्थान, हरियाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में अति प्राचीन काल से प्रचलित है। इसके अनुरूप अन्य प्रचलित संस्थाएं हैं पाल, गण, गणसंघ, सभा, समिति, जनपद अथवा गणतंत्र।
समाज में सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाये रखने के लिए मनमर्जी से काम करने वालों अथवा असामाजिक कार्य करने वालों को नियंत्रित किये जाने की आवश्यकता होती है, यदि ऐसा न किया जावे तो स्थापित मान्यताये, विश्वास, परम्पराए और मर्यादाएं ख़त्म हो जावेंगी और जंगल राज स्थापित हो जायेगा। मनु ने समाज पर नियंत्रण के लिए एक व्यवस्था दी। इस व्यवस्था में परिवार के मुखिया को सर्वोच्च न्यायाधीश के रूप में स्वीकार किया गया है। जिसकी सहायता से प्रबुद्ध व्यक्तियों की एक पंचायत होती थी। जाट समाज में यह न्याय व्यवस्था आज भी प्रचलन में है। इसी अधार पर बाद में ग्राम पंचायत का जन्म हुआ.
जब अनेक गाँव इकट्ठे होकर पारस्परिक लेन-देन का सम्बन्ध बना लेते हैं तथा एक दूसरे के साथ सुख-दुःख में साथ देने लगते हैं तब इन गांवों को मिलकर एक नया समुदाय जन्म लेता है जिसे जाटू भाषा में गवाहंड कहा जाता है। यदि कोई मसला गाँव-समाज से न सुलझे तब स्थानीय चौधरी अथवा प्रबुद्ध व्यक्ति गवाहंड को इकठ्ठा कर उनके सामने उस मसले को रखा जाता है।प्रचलित भाषा में इसे गवाहंड पंचायतकहा जाता है। गवाहंड पंचायत में सभी सम्बंधित लोगों से पूछ ताछ कर गहन विचार विमर्श के पश्चात समस्या का हल सुनाया जाता है जिसे सर्वसम्मति से मान लिया जाता है।
जब कोई समस्या जन्म लेती है तो सर्व प्रथम सम्बंधित परिवार ही सुलझाने का प्रयास करता है। यदि परिवार के मुखिया का फैसला नहीं माना जाता है तो इस समस्या को समुदाय और ग्राम समाज की पंचायत में लाया जाता है। दोषी व्यक्ति द्वारा पंचायत फैसला नहीं माने जाने पर ग्राम पंचायत उसका हुक्का-पानी बंद करने, गाँव समाज निकला करने, लेन-देन पर रोक आदि का हुक्म करती है। यदि समस्या गोत्र से जुडी हो तो गोत्र पंचायत होती है जिसके माध्यम से दोषी को घेरा जाता है।

खाप शब्द का विश्लेषण

खाप शब्द का विश्लेषण करें तो हम देखते हैं कि खाप दो शब्दों से मिलकर बना है । ये शब्द हैं '' और 'आप'. ख का अर्थ है आकाश और आप का अर्थ है जल अर्थात ऐसा संगठन जो आकाश की तरह सर्वोपरि हो और पानी की तरह स्वच्छ, निर्मल और सब के लिए उपलब्ध अर्थात न्यायकारी हो. अब खाप एक ऐसा संगठनमाना जाता है जिसमें कुछ गाँव शामिल हों, कई गोत्र के लोग शामिल हों या एक ही गोत्र के लोग शामिल हों। इनका एक ही क्षेत्र में होना जरुरी नहीं है। एक खाप के गाँव दूर-दूर भी हो सकते हैं. बड़ी खापों से निकल कर कई छोटी खापोंने भी जन्म लिया है. खाप के गाँव एक खाप से दूसरी खाप में जाने को स्वतंत्र होते हैं. इसी कारण समय के साथ खाप का स्वरुप बदलता रहा है। आज जाटों की करीब ३५०० खाप अस्तित्व में हैं.

सर्वखाप पंचायत

सर्वखाप पंचायत जाट जाति की सर्वोच्च पंचायत व्यवस्था है। इसमें सभी ज्ञात पाल, खाप भाग लेती हैं। जब जाति , समाज, राष्ट्र अथवा जातिगत संस्कारों, परम्पराओं का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है अथवा किसी समस्या का समाधान किसी अन्य संगठन द्वारा नहीं होता तब सर्वखाप पंचायत का आयोजन किया जाता है जिसके फैसलों का मानना और दिशा निर्देशानुसार कार्य करना जरुरी होता है। सर्वखाप व्यवस्था उतनी ही पुराणी है जितने की स्वयं जाट जाति। समय-समय पर इसका आकर, कार्यशैली और आयोजन परिस्थितियां तो अवश्य बदलती रही हैं परन्तु इस व्यवस्था को आतताई मुस्लिम, अंग्रेज और लोकतान्त्रिक प्रणाली भी समाप्त नहीं कर सकी।





















भारतीय संविधान संशोधन अधिनियम

७३वां संविधान संशोधन अधिनियम, १९९२ (पंचायती राज)

स्थानिय स्वशासन की द्र्ष्टि दे यह संशोधन अधिनियम सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं । इस संशोधन अधिनियम के द्वारा पंचायतो के गठन को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई हैं । इस संशोधन अधिनियम के द्वारा संविधान में एक नवीन भाग अथार्त भाग ९ जोड़ा गया जो पंचायतो के विषय में हैं । संविधान के इस भाग में २४३, २४३क से २४३ण तक के अनुच्छेद हैं |

आतंकवादी तथा विघटनकारी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, १९८७

आतंकवादी तथा विघटनकारी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, १९८७ | इसे टाडा के नाम से जाना जाता हैं ।

आतंकवाद निरोधी अधिनियम, २००२

अत्याचार विरोधी अधिनियम, २००२ - देश में आतंकवाद पर अकुंश लगाने के उद्देश्य से २ अप्रैल, २००२ को टाडा के स्थान पर एक नया आतंकवाद निरोधी अधिनियम पोटा लागु किया गया । संसद केदोनो सदनों के संयुक्त अधिवेशन में २६ मार्च, २००२ पारित होने के बाद २ अप्रैल, २००२ को राष्ट्रपति के अनुमोदन के साथ ही यह विधेयक एक अधिनियम पोटा के रुप में आस्तित्व में आया ।

८६वां संविधान संशोधन अधिनियम (शिक्षा)

८६वां संविधान संशोधन विधेयक, भारतीय संविधानका एक संशोधन विधेयक है। यह विधेयक 12 दिसंबर, 2002 को प्रारित हुआ। इस विधेयक मे ६ से १४ वर्ष के आयु वर्ग के सभी बच्चों कोराज्य द्वारा मौलिक अधिकार के रुप में प्राथमिक शिक्षा मुफ्त देने का प्रावधान हैं।

सूचना का अधिकार अधिनियम, २००५

सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act) भारत के संसद द्वारा पारित एक कानून है जो 12 अक्तूबर, 2005 को लागू हुआ (15 जून, 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन)। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रेकार्डों और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। जम्मू एवं काश्मीर को छोडकर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, २००५

भारतीय संसद द्वारा २ फरवरी, २००६ को राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, २००५ योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार शुरु करने के लिए प्रारम्भ की गई ।
ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) 2005 सरकार का प्रमुख कार्यक्रम है जो गरीबों की जिंदगी से सीधे तौर पर जुड़ा है और जो व्यापक विकास को प्रोत्साहन देता है। यह अधिनियम विश्व में अपनी तरह का पहला अधिनियम है जिसके तहत अभूतपूर्व तौर पर रोजगार की गारंटी दी जाती है। इसका मकसद है ग्रामीण क्षेत्रों केपरिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढाना। इसके तहत हर घर के एक वयस्क सदस्य को एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिए जाने की गारंटी है। यह रोजगार शारीरिक श्रम के संदर्भ में है और उस वयस्क व्यक्ति को प्रदान किया जाता है जो इसके लिए राजी हो। इस अधिनियम का दूसरा लक्ष्य यह है कि इसके तहत टिकाऊ परिसम्पत्तियों का सृजन किया जाए और ग्रामीण निर्धनों की आजीविका के आधार को मजबूत बनाया जाए। इस अधिनियम का मकसद सूखे, जंगलों के कटान, मृदा क्षरण जैसे कारणों से पैदा होने वाली निर्धनता की समस्या से भी निपटना है ताकि रोजगार के अवसर लगातार पैदा होते रहें।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एनआरईजीए)(NREGA)

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमएनआरईजीए) (MNREGA) एक भारतीय रोजगार गारंटी योजना है, जिसे 25 अगस्त 2005 को विधान द्वारा अधिनियमित किया गया गया. यह योजना प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के उन वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराती है जो प्रतिदिन 100 रुपये की सांविधिक न्यूनतम मजदूरी पर सार्वजनिक कार्य-सम्बंधित अकुशल मजदूरी करने के लिए तैयार हैं. 2010-11 वित्तीय वर्ष में इस योजना के लिए केंद्र सरकार का परिव्यय 40,100 करोड़ रुपए है.
इस अधिनियम को ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, मुख्य रूप से ग्रामीण भारत में रहने वाले लोगों के लिए अर्ध-कौशलपूर्ण या बिना कौशलपूर्ण कार्य, चाहे वे गरीबी रेखा से नीचे हों या ना हों. नियत कार्य बल का करीब एक तिहाई महिलाओं से निर्मित है. सरकार एक कॉल सेंटर खोलने की योजना बना रही है, जिसके शुरू होने पर शुल्क मुक्त नंबर 1800-345-22-44 पर संपर्क किया जा सकता है.  शुरू में इसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA) कहा जाता था, लेकिन 2 अक्टूबर 2009 को इसका पुनः नामकरण किया गया.