સોમવાર, 28 એપ્રિલ, 2014

मीटर गैज और ब्रोड गैज की रोचक कहानी

मीटर गैज और ब्रोड गैज की रोचक कहानी 

 

भारत में आज भी रेलगाडियाँ कई अलग अलग माप के ट्रेक पर चलती है - जैसे कि ब्रोड गैज, मीटर गैज, नैरो गैज आदि.. परंतु सर्वमान्य ट्रेक अब ब्रोड गैज हो गया है. कई अन्य तकनीकों की तरह भारत का रेलवे सिस्टम भी अंग्रेजो के द्वारा ही विकसित किया गया था और उस जमाने के हिसाब से उसे मान्यता दी गई थी. तो फिर ब्रोड गैज और मीटर गैज के माप किस तरह से तय किए गए? आइए जानते हैं -

मीटर गैज -

1869 में लोर्ड मेयो ने जो कि भारत के वायसरॉय थे, एक फरमान जारी किया था कि भारत में भी रेलवे सिस्टम होना चाहिए और ट्रेन के डिब्बे में 4 व्यक्ति आराम से बैठ सकें इसलिए उसकी चौड़ाई 6 फूट 6 इंच होनी चाहिए. ट्रेन के ट्रेक का माप उसके 50% से कम नहीं होना चाहिए यानी कि 3 फूट 3 इंच. इसको मिलीमीटर में बदलने पर माप आता है 990 मिमी.

अंग्रेज उस समय भारत में मैट्रिक पद्धति ला रहे थे, इसलिए उन्होनें ट्रेक का माप सुविधा के लिए 1000 मिमी. यानी 1 मीटर कर दिया और इस तरह बना मीटर गैज ट्रेक का माप. भारत ने भी 1957 में माप की मैट्रिक प्रणाली को अपना लिया. भारत में आज 11,000 किमी से अधिक के ट्रेक मीटर गैज ही हैं.

ब्रोड गैज -

भारत में ब्रोड गैज ट्रेक का माप 5.5 फूट का होता है परंतु इंग्लैंड में जो स्टैंडर्ड गैज अपनाया गया था उसके ट्रेक का माप थोडा विचित्र यानी कि 4 फूट 8.5 इंच था. प्रश्न यह है कि इंग्लैंड ने इतने अटपटे माप को क्यों अपनाया? इसका जवाब इतिहास मे मिलता है. रोमन लोग अपने रथों के पहियों के बीच की दूरी को 4 फूट 8.5 इंच पर ही रखते थे, क्योंकि दो घोडों को आपस में टकराए बिना एक साथ दौडते रहने के लिए एक दूसरे से कम से कम इतना दूर होना जरूरी होता है.

रोमनों ने जब इंग्लैंड पर कब्जा किया तो उन्होनें वहाँ के मार्गों पर भी अपने रथ दौड़ाए. समय बीतने पर अंग्रेजों ने उसी माप की बग्गी बनाई और वर्षों तक उसका इस्तेमाल किया. इसके बाद पहले वाष्प इंजिन को जब बनाया गया तो उसका माप भी यही था. अंत में ज्योर्ज स्टीफंस ने पहला रेल इंजिन रॉकेट बनाया और उसकी चौड़ाई भी यही थी.

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